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________________ भावबोधिनी टीका. तीर्थकराणां पितृप्रभृतिनामनिरूपणम् १०६७ निष्क्रान्ता जन्मभूमिसु-बाकी के बावास २२ तीर्थंकरों ने अपने २ जन्म स्थान में दीक्षा धारण की है। अब सूत्रकार यह कहते हैं कि किस रीति से इन तीर्थकरों ने दीक्षा धारण की हैं (सव्वे वि चउव्वीसं जिणवरा एगदसेण णिग्गया) सर्वेऽपि चतुर्विशति जिनेन्द्रा एक दृष्येण निर्गताःसमस्त चौवीस तीर्थंकरों ने एक दूष्य वस्त्र धारण करके दीक्षा धारणकी है। (णय णाम अण्णलिंगे ण य गिहिलिंगे कुलिंगे य) न च नाम अन्यलिंङ्गे न च गृहिलिङ्ग कुलिङ्गे च इनतीर्थंकरोंने जो दीक्षा धारण की सो वे स्थविर कल्पित आदिरूप अन्यलिङ्ग में-दीक्षित नही हुए, न गृहस्थ रूपलिङ्ग में दीक्षित हुए और न शाक्यादिरूप कुलिङ्ग में ही दीक्षित-हुए किन्तु तीर्थंकर रूप में ही दीक्षित हुए। अब सूत्रकार यह प्रकट करते हैं कि कौन २ से तीर्थकर कितने २ परिवार के साथ दीक्षित हुए हैं (एको भगवं वीरो)एकाकी भगवान् वीरः-भगवान् महावीर ने एकाकी दीक्षा धारण की हैं (पासो मल्ली य तिहि तिहि सएहिं) पाश्चों मल्लिश्च त्रिभिस्त्रिभिः शतैः-तथा पाश्वनाथ भगवान् और मल्लिनाथ भगवान् ने तीन २ सौ परिवारों के साथ दीक्षा धारण की है। (भगवपि वासुपूजो छहिं पुरिससएहिं णिक्खतो भगवान् वासुपूज्यो षड्भिःपुरुषशतैःनिष्क्रान्तः-भगતીર્થકરોએ પોતપોતાનાં જન્મસ્થાનોમા દીક્ષા લીધી હતી. હવે સૂત્રકાર એ मता छ ते ती ४२।ये वी ते दीक्षा घा२९५ हुती. (सव्वे वि चउ. व्वीसं जिणवरा एगदूसेण णिग्गया) सर्वेऽपि चतुर्विशति जिनेन्द्रा एक दृष्येण निर्गताः-समस्त तीथ ४३॥से से व्यवस्त्र धारण रीनेहीक्षा मागी. ४२ ४२ ती. (णयणामअण्णलिंगे ण य गिहिलिंगे कुलिंगे य) नचनाम अन्यलिङ्गे नच गृह लिङ्गे कुलिङ्गे च-ते ती शये स्थ१ि२४६५४ आ६३५ અન્યલિંગમાં દીક્ષા લીધી ન હતી. ગૃહસ્થરૂપલિંગમાં પણ દીક્ષા લીધી ન હતી, શક્યાદિરૂપ કુલિંગમાં પણ દીક્ષા લીધી ન હતી પણ તીર્થકરરૂપે જ દીક્ષિત થયા હતા. હવે સૂત્રકાર એ વાત બતાવે છે કે કયા ક્યા તીર્થકરે કેટલા કેટલા परिवार सहित दीक्षा ७९५ ७२री उती. (एको भगवंवीरो) एकाकि भगवान वीर:-मपान मडावीरे मेला or Elan सीधी ती. (पासो मल्लीय तिहि तिहि सएहि)पार्यो मल्लिश्च त्रिभिस्त्रिभिः शतैः-तथा पाश्वनाथ सापाले भने મલ્લિનાથ ભગવાને ૩૦૦-૩૦૦ ત્રણ-ત્રણસોના પરિવાર સહિત દીક્ષા ગ્રહણ ४३ ती. (भगवं पि वासुपूज्जो छहिं पुरिससएहि णिक्खंतो) भगवान् वासुपूज्यो षड्भिः पुरुषशतैः निष्क्रान्त:-मावान वासु¥ये ६००७से पुरुषो से थे શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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