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________________ १०५८ __समवायाङ्गस्त्रे (राया य आससेणे य सिद्धत्थेचिय खत्तिए) राजा च अश्वसेनः सिद्धार्थ इतिच क्षत्रियः-राजा अश्वसेन२३ और क्षत्रियसिद्धार्थ२४। (तित्थप्पवत्तयाणं जिणवराणं) तीर्थप्रवर्तकानाम् जिनवराणाम्-तीर्थपवर्तक जिनवरों के (एए पियरों) एते पितरो-ये पिता (उदितोदिय-कुलवंसा) उदितोदितकुलवंशाः-उत्तरोत्तर उत्कर्षता को प्राप्त हुए कुलरूप वंश वाले थे। (विसु. द्धवंसा गुणेहिं उबवेया) विशुद्धवंशा गुणैरुपपेता:-मातृपितृसंबंधी वंश की निर्मलता से युक्त थे। सम्यग्दर्शनादि तथा दयादान आदि सदगुणों से संपन्न थे। जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए) जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे भारते वर्षेऽस्यामवसर्पिण्याम्-जम्बूद्वीप नाम के इस द्वीप में भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में(चउवीसं तित्थगराणं मायरो होत्या) चतुर्विंशति तीर्थकराणां मातर आसन्-चौबीस तीर्थकरों की माताएँ हुई हैं, (तं जह।) तद्यथा-जो इस प्रकार हैं-(मरुदेबी, विजया-सेणा सिद्धत्था, मंगला, सुसीमा य, पुहवी, लक्खणा, रामा, नंदा, बिहू, जया, सामा) मरुदेवी विजया सेना सिद्धार्था मङ्गला सुसीमा च पृथिवी लक्ष्मणा रामा नंन्दा विष्णुर्जया श्यामा-मरुदेवी१, विजयार सेना३ सिद्धार्था४ मंगला५ सुसीमा६ पृथिवी७ लक्ष्मणा८ रामा९ नंदा१० विष्णु११ जया१२ श्यामा १३ (सुजसा सुव्वय अइरा देवीपभावई पउमा वप्पा सिवा वामा-तिसला देवी आससेणे य सिद्ध त्थेचिय खत्तिए) (२3) Pian अश्वसेन मने (२४) क्षत्रिय सिद्धा. (तित्थप्पवत्तयाणं जिणवराणं) तीर्थप्रवर्तकानाम् जिनवराणामती प्रत लिनयना (ए ए पियरो) एते पितरो- पिता (उदितोदिय कुलवंसा) उदितोदित-कुलवंशाः-उत्तरे। त२ ४५ पामता स३५१ वाजाता, (विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया)विशुद्धवंशा गुणैरुपपेता:-मातृशनी मने पितृવંશની વિશુદ્ધતાથીયુક્ત હતા, સમ્યગદર્શન આદિ તથા દયા, દાન આદિ સદ્ગુણોથી યુકત ता. (जंबुद्दीवेण दीवे भारहेवासे इमीसे ओसप्पिणीए)जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे भारते वर्षेऽस्यामवसपिण्याम्-भूद्वी५ नामना l Suvi मा भारत वर्षमा An Aqसपिए मां (चउवीसं तित्थगराणं मायरो होत्था) चतुविशति तीर्थकराणां मातर आसन्-२४ तीथ शनी २४ भातायो ५६ ४ छ, (तं जहा) तद्यथा-तमना नाम मा प्रमाणे छ-(मरुदेवी, विजया, सेणा, सिद्धत्था, मंगला, सुसीमा य, पुहवी, लक्खणा, रामा, नंदा, विण्हू, सामा) (१) भ३३पी, (२) विन्या, (3) सेना, (४) सिद्धार्था, (५) मा , (6) सुस भा, (७) पृथिवी, (८)समा ,()रामा, (१०) नं ४, (११) विY, (१२) गया, (१३) श्यामा શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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