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भावबोधिनी टीका. समवसरणस्वरूपनिरूपणम्
१०५१ टीका-'तेणं' इत्यादि-'तेणं कालेणं' तस्मिन् काले खलु दुःषमसुषम नामके चतुर्थेऽरे 'तेणं समयेणं' तस्मिन् समये खलु भगवान महावीरस्वामी यदा विचरति स्म तस्मिन् समये इत्युपक्रम्य कप्पस्स समोसरणं णेय' कल्पस्य समवसरणं नेतव्यम् कल्पे यथा समवसरणवक्तव्यता प्रोक्ता तथैव वक्तव्या, किय. त्पयन्तं वक्तव्या ? इत्याह-'जाव गणहरा सावच्चानिरवच्चा वोच्छिण्णा' यावद गणधराः सापत्या निरपत्या व्युच्छिन्ना:-शिष्यप्रशिष्यसहितगणधरस्य सुधर्मस्वामहावीर स्वामी विहार कर रहे थे उस समय में-इस पाठ से लेकर (कप्पस्स समोसरणं णेयव्वं) कल्पस्य समवसरणं नेतव्यम्-कल्पसूत्र में जिस प्रकार से समवसरण के विषय में कथन किया गया है उसी प्रकार का कथन (जाव गणहरा सावच्चा निरवच्चा वोच्छिण्णा)यावद् गणधराः सापत्या निरपत्या व्युच्छिन्नाः-यावत् शिष्य पशिष्य सहित सुधर्मस्वामी और दूसरे गणधर
और उनके शिष्य पशिष्य दूसरे गणधर मोक्ष चले गये यहां तक का ग्रहण करना चाहिये सू०१९५॥
टीकार्थ-'तेणं कालेणं तेणं समएणं' इत्यादि-उस काल में दुःषम सुषम नामके चतुर्थ आरे में-जब कि भगवान महावीर स्वामी विहार कर रहे थे-उस समय में-इस पाठ से लेकर कल्पसूत्र में जिस प्रकार से समवसरण के विषय में कथन किया गया है उसी प्रकार का कथन यावत शिष्य प्रशिष्य सहित सुधर्मस्वामी और दूसरे गणधर शिष्यपशिष्य रहित दूसरे गण. धर मोक्ष चले गये यहां तक का ग्रहण करना चाहिये। तात्पर्य इसका यह है कि समवसरण के विषय का कथन कल्पसूत्र में किया गया हैसो वह सब कथन "तेणं कालेणं तेणं समएणं" यहां से लेकर-"गणहरा ४२ता जता त्यारे- पाथी २३ ४२ (कप्पस्स समोसरणं णेयध्वं) कल्पस्य समवसरणं नेतव्यम्-४८५सूत्रमारे शते समयस२९ विर्ष पनि यु छे ते प्रा२नु १९ (जाव गणहरा सावचा निरवच्चा वोच्छिण्णा) याबद् गणधराः सापत्या निरपत्या व्युच्छिन्नाः-शिष्य शिष्य सहित सुधास्वामी अने ते સિવાયના બીજા ગણધરે મોક્ષે સિધાવ્યા ત્યાં સુધીનું કથન ગ્રહણ કરવું સૂ. ૧૫ ___ -'तेणं कालेणं तेणं समएणं' इत्यादि-तेणे-षम नामना ચોથા આરામાં જ્યારે ભગવાન મહાવીર સ્વામી વિહાર કરતા હતા ત્યારે ત્યાથી શરૂ કરીને કલપસૂત્રમાં જે પ્રકારે સમવસરણ વિષે કથન કર્યું છે એ જ પ્રકારનું કથન શિષ્યશિવે સહિત સુધર્માસ્વામી અને બીજા ગણધર મેક્ષ ગયા ત્યાં સુધીનું કથન ગ્રહણ કરવું જોઈએ. તેનું તાત્પર્ય એ છે કે સમવસરણ વિષેનું थन ४८५सूत्रमा १२वामा माव्युछ तो समस्त थन 'तेणं कालेणं तेणं
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર