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________________ भावबोधिनी टीका. अवधिज्ञानस्वरूपनिरूपणम् १०१५ वेदयन्ति न तु शीतोष्णाम् । 'एवं चेव' एवमेव-अनेन प्रकारेणैवोपक्रम्य सर्व 'वेयणापयं' वेदनापदं-प्रज्ञापनायाः पञ्चत्रिंशत्तमं पदं 'भाणियन्वं' भणितव्यम् । वेदनायालेश्यावत्वेन वेदनाप्ररूपणानन्तर लेश्यां प्ररूपयति='कइणं भंते ! लेसानो पण्णत्ताओ' कति खलु भदन्त ! लेश्याः प्रज्ञप्ताः? 'गोयमा !' हे गौतम ! 'छलेसाओ पणत्ताओ' षड्लेश्याः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा-'किण्हानीलाकाऊतेऊपम्हासुक्का' कृष्णा-नीला-कापोता तेजसी-पद्मा-शुक्ला । 'एवं लेसापयं भाणियव्वं' एवं लेश्यापदं-प्रज्ञापनायाः सप्तदशं लेश्यापदं भणितव्यम् । कृष्णादिक गौतम ! नारक जीव शीतबेदना और उष्णवेदना इन दो वेदनाओं को भोगते हैं, परन्तु शीतोष्णवेदना को नहीं भोगते हैं। (एवं चेव वेयणापयं भाणि यव्वं) एवमेव वेदनापदं भणितव्यम्-इसी तरह उपक्रम (प्रारम्म) करके सभी वेदना पद अर्थात् प्रज्ञापना सूत्र के पैतीसवां पद कहना चाहिए। वेदना लेश्याओ से युक्त होती है। इसलिये वेदना की प्ररूपणा के बाद अब सूत्रकार लेश्या की प्ररूपणा करते हैं (कइणं भंते ! लेसाओ पण्णत्ताओ) कति खल भदन्त ! लेश्याः प्रज्ञप्ता:-हे भदंत! लेश्या कितने प्रकार का है? (गोयमा! छ लेसाओ-पण्णत्ताओ)हे गौतम! षड्लेश्याः प्रज्ञप्ता:उत्तर-गौतम ! लेश्या छ प्रकार की है। (तं जहा) तद्यथा-वे प्रकार ये हैं (किण्हा नीला काऊ तेऊ पम्हा सुक्का) कृष्णा नीला कापोता तैजसी पद्मा शुक्ला-कृष्णलेश्या१, नीललेश्या२, कापोतलेश्या३, तेजोलेश्या४ पद्मलेश्या५ और शुक्ललेश्या६। (एवं लेसापयं भाणियव्यं) एवं लेश्यापदं भणितव्यम्हे गौतम ! नैरयिकाः--- गौतम! ना२४ी वो शीतवन मन Sनाने लागवे छे, ५९] शीतवेदनाने माता नथी. (एवं चेव वेयणा पयं भाणियब्वं) एवमेव वेदनापदं भणितव्यम्-2॥ प्रमाणे २३मात शेने સઘળાં વેદના પદનું વર્ણન થવું જોઈએ-એટલે કે પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના પાંત્રીસમાપદનું કથન થવું જોઈએ. વેદના લેશ્યાઓથી યુક્ત હોય છે. તેથી વેદનાની પ્રરૂપણ કરીને सूत्र४२ सेश्यामानी ५३५।। ४२ छे--(कइ णं भंते ! लेसाओ पण्णत्ताओ ?) कति खल भदन्त! लेश्याः प्रज्ञप्ताः ?-मत! वेश्याम प्रारनी ४४ छ ? (गोयमा ! छ लेसाओ पण्णत्ताओ) हे गौतम!षइ लेश्याः प्रज्ञप्ताःहै गौतम! अश्या ७ प्रा२नी छे. (तं जहा) तद्यथा-ते ॥२॥ ॥ प्रमाणे छ(किण्हा नीला काऊ तेऊ पम्हासुका) कृष्णा, नीला, कापोता,तैजसी,पद्मा, शुक्ला(१) ४ोश्या, (२) नासोश्या, (3) पोतोश्या, (४) तेनसेश्या, (५) ५ोश्यां भने (६) शुसोश्या. (एवं लेसापयं भाणि यव्वं) एवं लेश्यापदं भणितव्यम् શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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