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भावबोधिनी टीका. नारकादीनामवगाहनानिरूपणम्
९९३ ततो यदा सूक्ष्मवादरो वा एकेन्द्रियोऽधोलोकान्तार्श्वलोके, ऊर्ध्वलोकान्ता दधोलोके वा सूक्ष्मत या वादरतयावोत्पतुमिच्छति, तदा सः अधोलोकान्तस्थि • उर्वलोके सूक्ष्मतया बादरतया उत्पद्यते, ऊर्ध्वलोकान्तस्थितोऽधोलोके च । तदा तस्य मारणान्तिकसमुद्धातेन समवहतस्य यथोक्तप्रमाणातैजसशरीरावगाहना भवति । 'उक्कोसेणं जाव अहे सत्तमा पुढवी' उत्कृष्ट से उस नारकी के तैजसशरीर की अवगाहना नीचे सप्तम पृथिवीतक होती है। तिर्यकरूप में स्वयंभूरमणसमुद्रपर्यंत होती है, और ऊर्ध्व में पंडकबन में जो पुष्करिणियां हैं वहांतक होती है। तेजस शरीर की इतनी अवगाहना उस नारक जीव की होती है जो सप्तमपृथिवी में वर्तमान हो और वह स्वयंभूरमणपर्यंत या पंडकवन की पुष्करिणी पर्यन्त मारणांतिक समुद्धात करके वहां मत्स्य की पर्याय से उत्पन्न हो जाता हो। 'पंचेदियतिरिक्ख जोणियस्स णं भंते मारणांतिसमुग्घा. एणं समवयस्स तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता' प्रश्नहे भदंत ! पंचेन्द्रिय तिर्यंच के मारणांतिक समुद्धात के वश से बहिर्निर्गत तैजस शरीर की कितनी बडी अवगाहना होती है ? गोयमा! जहा वेइंदियसरीरस्स' उत्तर-हे गौतम! जितनी अवगाहना दो इन्द्रिय जीव के तैजसशरीर की कही गई है उतनी ही अवगाहना पञ्चेन्द्रियतिर्य व के तैजस शरीर की जाननी चाहिये। प्रश्न-मारणांतिक समुद्धात करते समय मनुष्य के तैजस शरीर की अवगाहना कितनी बडी कही गई है ? उत्तरહના નીચે સાતમી પૃથ્વી સુધીની હોય છે. તિર્યકરૂપે સ્વયં ભૂરમણ સમુદ્ર સુધીની હોય છે, અને ઉર્ધ્વમાં પડકવનમાં પુષ્કરિણિ સુધીની હોય છે. તેજસ શરીરની એવડી અવગાહના તે નારકા જીવની થાય છે કે જે સાતમી પૃથ્વીમા રહેલી હોય અને જે નારકીજીવ સ્વયં ભુરમણ સુધી અથવા પંડકવનની પુષ્કરણ સુધી મારણાંતિક समुद्धात शने त्यो भत्स्यनी पर्याये उत्पन्न य त हाय छे. 'पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स णं भंते मारणांति समुग्याएणं समवयस्स तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता? प्रश्न-डे सहनत! पथेन्द्रिय तिययना મારણાંતિક સમુદ્રઘાતને કારણે બહાર નીકળેલ શરીરની અવગાહના કેટલી મોટી डाय छ ? उत२-गोयमा !जहा बेइंदियसरीरस्स' हे गौतम ! मेन्द्रिय सपना તૈજસશરીરની જેટલી અવગાહના કહી છે એટલી જ અવગાહના પંચેન્દ્રિય તિર્યચના તેજસ શરીરની જાણવી. પ્રશ્ન–હે ભદંત ! મારણાંતિક સમુદ્રઘાત કરતી भनुष्यना ते शनी अवाना प्रमाण मा डाय छ ? उत्त२-'समयखे.
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર