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________________ भावबोधिनी टीका. नारकादीनामवगाहनानिरूपणम् ९८३ वर्षायुष्कर्म भूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, किं वा-सम्यमिथ्याष्टपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम् ? गोयमा ! सम्मदृढि० नो मिच्छदिद्वि०, नो सम्मामिच्छद्दिष्टि०' हे गौतम ! सम्यग्दृष्टिपप्तिकसंख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रातिकमनुष्याहारकशरीरं, नो मिथ्यादृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्कर्म मजगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम् । नो सम्यडूमिथ्यादृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम् । 'जइ सम्मदिहि कि संजय० असंजय० संजयासंजय०' यदि भदन्त! सम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम् , किं संयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्कर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहाशरीरम्, किम्-असंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिजगभव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, किं वा-संयतासंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्कक मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम् ? 'गोयमा ! संजय० नो असंजय० नो संजयासंजय०' हे गौतम ! संयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिजगभव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम् नो असंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम्, नो संयतासंयतसम्यगदृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिफमनुष्याहारकशरीरम् । 'जइ अपर्याप्त के नहीं । पर्याप्त में भी सम्यक दृष्टि के ही होता है मिथ्यादृष्टि या सम्यक्रमिथ्या दृष्टि के नहीं होता । यही बात 'गोयमा ! सम्माद्दिट्ठी, नो मिच्छादिट्ठी नो सम्मामिच्छदिछी' इन पदों द्वारा व्यक्त की गई है। प्रश्न-यदि सम्यदृष्टि के यह आहारकशरीर होता है तो किस सम्यकदृष्टि के? क्या जो संयत है उस सम्यक्रदृष्टि के या जो असंयत है उस सम्यकूदृष्टि के लिये, या कि जो संयता संयत है उस सम्यकदृष्टि के लिये? उत्तर-हे गौतम! यह आहारकशरीर जो संयत है उनको होता है असंयत जीव के नहीं होता है और न संयतासंयत जीव के ही होता સમ્યક્દષ્ટિને હોય છે મિથ્યાદષ્ટિને અથવા સમ્યકૃમિથ્યાષ્ટિને હોતુ નથી. એ જ पात 'गोयमा ! सम्मादिहि, नो मिच्छाट्ठिी नो सम्मामिच्छट्ठिी' मा પદ દ્વરા બતાવી છે. પ્રશ્ન–જે સમ્યક્દષ્ટિને તે આહારક શરીર હોય છે તે સંતસમ્યફષ્ટિને કે અસંયત સમ્યફષ્ટિને કે સંયતાસંતસમ્યકૃષ્ટિને હોય છે ? ઉત્તર-હે ગૌતમ ! તે આહારક શરીર સંયતને જ હોય છે અસંયત ને હોતું નથી અને સંયતાસં. યત જીવોને પણ હેતું નથી. પ્રશ્ન-જે તે આહારક શરીર સંયતજીને હે ય છે શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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