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स्थानाङ्गसूत्रे ' सेयंकार ' इत्यत्र 'य' इति आपत्वात् । क्वचित् ' से' इत्यसावित्यर्थे । क्वचित्तु-तस्यार्थे । अथवा-' सेयंकार' इत्यस्य श्रेयस्कार इतिच्छाया । श्रेयसः करणं श्रेयस्कार इति विग्रहः । श्रेयस उच्चारणमित्यर्थः। एतदनुयोगो यथा'सेयं मे अहिज्जिउ अज्ज्ञयणं धम्मपण्णत्ती' इत्यत्र श्रेयः-अतिशयेन प्रशस्यकल्याणमिति । अथवा-' सेयंकारः' इत्यस्य ' सेयकार' इतिच्छाया । 'सेय' शब्दो भविष्यदर्थे । ततः कारप्रत्ययः । तदनुयोगो यथा-' सेयकाले अकम्मं नाविभवई' इत्यत्र सेयशब्दो भविष्यदर्थवाचक इति । अत्रानुस्वारः प्राकृतत्वादिति ।। " सेयंकारे" ऐसा पाठ है सो यहां “यं" यह आर्ष होनेसे आयाहै कहीं पर "से" यह " असौ " इस अर्थमें आता है अथवा-" सेयं. कार" की संस्कृतच्छाया श्रेयस्कार ऐसी भी होती है, इसका विग्रह " श्रेयसः करणम्-श्रेयस्कारः" ऐसा होता है इसका अर्थ है श्रेयकाकल्याणका-उच्चारण करना इसका अनुयोग इस प्रकार से है-जैसे" सेयं मे अहिजउ अज्झयणं धम्मपण्णत्ती" यहां श्रेय शब्द यह है कि धर्म प्रज्ञप्तिका अध्ययन मुझे अधिकसे अधिक रूपमें प्रशस्य है कल्याणकर है । अथवा-" सेयंकार " की छाया " सेयकारः" ऐसी भी होती है इस पक्षमें 'सेय' शब्द भविष्यत् अर्थमें प्रयुक्त होगा
और फिर उससे कार प्रत्यय होकर " सेयकार " ऐसा शब्द निष्पन्न हो जावेगा इस सेयकारका जो अनुयोग होगा वह भी सेयकार होगा इसका अनुयोग जैसे-" सेयकाले अकम्मं वा विभव" ऐसा है यहां " सेय" शब्द भविष्यत् अर्थका वाचक है यहां अनुस्वार प्राकृत होनेसे छ. यारे ‘से' ५४ ‘असौ' 41 सरत ५४न। अर्थमा ५ १५२॥य छ अथवा "सेयकार" छाया " श्रेयस्कार" ५५ थाय छे. तेनी व्युत्पत्ति २॥ प्रमाणे थाय छे-" श्रेयसः करणम् श्रेयस्कारः” मेरो है श्रेयनु-यानु:स्या२१ ४२'. तने। अनुयो । प्रमाणे सभा -" सेय' मे अहि जिउ अज्झयण धम्म पण्णत्ती" मी 'श्रय' श६ मे प्र४८ ४२ छ है यमप्रशમિનું અધ્યયન મારે માટે અધિકમાં અધિકરૂપે પ્રશસ્ય-કલ્યાણકારક છે. અથવા “सेयंकार"नी सकृत छाया “सेयकारः" ५५ थाय छे. म। सत छायानी અપેક્ષાએ શેય?” પદ ભવિષ્યકાલિક અર્થના સંબંધમાં પ્રયુક્ત થશે. અને तम ७२' प्रत्यासाथी सेय२' श६ सन. 0 सेय।२।२ मनुयोग यशे ते ५५ सेय२ ४. म 3-" सेयकाले अकम्म वा विभव" અહી સેય’ શબ્દ ભવિષ્યકાલિન અર્થને વાચક છે, અહીં અનુરવાર પ્રાકૃત
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર :૦૫