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सुघा टीका स्था०९ सू० १४ चक्रवर्तिमहानिधिनिरूपणम्
२५३ लकमहानिधौ पुरुषाणां महिलानामश्वानां हस्तिनां च यः सर्व आभरणविधिः स मणितः ३ ॥ ४ ॥ चतुर्थे सर्वरत्ने महानिधी चक्रवर्ति नो यानि चतुर्दशमयराणि-श्रेष्ठानि रत्नानि भवन्ति तानि उत्यद्यन्ते तानि कीदृशानि ? इत्याह'एकेन्द्रियाणि ' इत्यादि तत्र केन्द्रियाणि-एकेन्द्रियजातीनि चक्र १-छत्र २दण्ड ३-खड्ग ४-धर्म ५-मणि ६-काकिणी ७ रूपाणि सप्त, तथा-पञ्चेन्द्रियाणि सेनापति १-गाथापति २-वार्धकि ३-पुरोहित ४-स्च्य ५ श्व ६-गण ७ रूपाणि सप्तेति संकलनया चतुर्दशरत्नानि ४ ॥ ५॥ पश्चमे महाषने महापिङ्गल महानिधिका अधिष्ठायक पिङ्गल देव है, इससे इस महानिधिका नाम पिङ्गल महानिधि है, इस पिगल महानिधि में पुरुषोंके महिलाजनोंके घोटकों (घोडो)के एवं हाथियों के आभरणोंकी जो समस्त विधि है, वह प्रकट की गई है, चतुर्थ जो सर्वरत्न महानिधि है, इसका अधि. ष्ठायक देव सर्यरत्न है, इस सम्बन्धसे इस निधिका नाम सर्वरत्न महानिधि है, इसी तरहसे आगेकी और भी महानिधि के सम्बन्धमें जानना चाहिये. इस सर्वरत्न महानिधिमें चक्रवर्ती के जो श्रेष्ट १४ रत्न हैं-एकेन्द्रिय जाति सम्बन्धी ७ रत्न और पंचेन्द्रिय जाति सम्बन्धी ७ सात रत्न-वे उत्पन्न होते है-एकेन्द्रिय जाति संबंधी ७ सात रत्न इस प्रकार से हैं-चक्र १ छत्र २ दण्ड ३, खडूग ४, चर्म ५, मणि ६ और काकिणी ७ पश्चेन्द्रिय जाति संबंधी ७ रत्न इस प्रकारसे हैं-सेनापति १, गाथापति ६, वार्धकि ३, पुरोहित ४, स्त्री ५, अश्व ६ और गज ७
“सर्वआभरणाविधि” पिस भनिधिमा पुरुषाना, खीमाना, अश्वीना અને હાથીઓનાં સમસ્ત આભરણે રહેલાં હોય છે.
થા મહાનિધિને અધિષ્ઠાતા દેવ સર્વ રત્ન છે, અને તે નિધિમાં ચક વતના ૧૪ શ્રેષ્ઠ રને ઉત્પન્ન થાય છે, તેથી તે નિધિનું નામ સર્વ રત્ન મહા નિધિ છે. એ જ પ્રમાણે બાકીના પાંચ નિધિઓનાં નામે વિષે પણ સમજવું. આ સર્વરત મહાનિધિમાં ચકવતિના જે ૧૪ શ્રેષ્ઠ રને ઉત્પન્ન થાય છે તેમાંના ૭ રને એકેન્દ્રિય જાતિના અને ૭ રને પચેન્દ્રિય જાતિના હોય છે. એકેન્દ્રિય तिनi सात २त्नी नीय प्रमाणे ४ा छे-(१) २४, (२) छत्र, (3) , (४) ५३.१, (५) यमी, (६) भलि मने (७) sligl२.न. पयन्द्रिय तिना सात २त्ता मा प्रमाणे ह्यां -(१) सेनापति, (२) थापति, (3) पापड, (४) पुडित, (५) स्त्री, (6) अव भने (७) ११.
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫