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________________ - --- सुघा टीका स्था०८ सू० ५५ पर्वतोपरिस्थितकूटस्वरूपनिरूपणम् १७३ नन्दा-इत्यादि । तत्र-रिष्टकूटवासिनी नन्दोत्तरा १, तपनीयकूटवासिनी नन्दा २, काश्चनकूटवासिनी आनन्दा ३, रजतकूटयासिनी नन्दिवर्द्ध ना ४, दिशासौ. वस्तिककूटवासिनी विजया ९, पलम्बकूटवासिनी वैजयन्ती ९, अञ्जनकूटवासिनी जयन्ती ७, अञ्जनपुलककूटवासिनी अपराजिता ८॥ एता नन्दोत्तराद्या दिक्कुमार्या भगवतोऽहतो जन्मनि दर्पणहस्ता गायन्त्यो भगवन्तं पर्युपासते, इति ॥ ३ ॥ तथा-जम्यू मन्दरस्य दक्षिणदिशि रुचकवरपर्यते अष्टौ रुचककूटानि प्रज्ञप्तानि, रिकाएँ रहती हैं, उनके नाम इस प्रकारसे हैं-नन्दोत्तरा १, नन्दा २, आनन्दा ३, नन्दिवई ना ४, विजया ५, वैजयन्ती ७ और अपराजिता ८ इनमें मन्दोत्तरा रिष्ठकट पर रहती है, नन्दा तपनीय कूट पर रहती है, आनन्दा काश्चन कूट पर रहती है, नन्दिवर्द्धना रजत कूट पर रहती है विजया दिशासौचस्तिक कट पर रहती है, वैजयन्ती प्रलम्बकट पर रहती है, जयन्ती अञ्जनकूट पर रहती है, और अपराजिता अञ्जनपुलक कूट पर रहती है। ये नन्दोत्तरा आदि दिक्कुमारियां भगवान् अर्हन्तके जन्मकालमें हाथों में दर्पण लिये हुए गाती रहती हैं, और भगवान्की पर्युपासनामें लगी रहती हैं ३। ___तथा--जम्बू मन्दरकी दक्षिण दिशामें जो रुचकवर पर्वत है, उस पर्वत पर आठ रुचककूट कहे गये हैं-उनका नाम इस प्रकारसे हैकनक १, काश्चन २, पद्म ३, नलिन ४, शशी ५, दिवाकर ६, वैश्रवण ७, एवं बडूर्य इन कनकादि आठोंहो कूटों पर महर्द्धिक यावत् पल्योछ-(1) नन्दोत्तरा, (२) नन्ही, (3) मानन्हा, नन्हिपद्धना. (५) पिया, (6) वैयन्ती, (७) यन्ती (८) अ५२ilrdl. નત્તરા નામની દિકુમારી રિષ્ટકૂટ પર રહે છે, નન્દા તપનીય કૂટ પર રહે છે, આનંદ કાંચન કૂટ પર રહે છે, નન્ટિવના રજતકૂટ પર રહે છે, વિજ્યા દિશાસૌવાસ્તિક છૂટ પર રહે છે. વજયતી પ્રલમ્નકૂટ પર રહે છે, જયન્તી અંજનકૂટ પર રહે છે અને અપરાજિતા અંજનપુલકફૂટ પર રહે છે. આ નન્દોત્તર આદિ દિકુમારીઓ ભાગવાન અહતના જન્મકાળે હાથમાં દર્પણ લઈને ગીત ગાય છે અને ભગવાનની પર્યું પાસના કરવા લાગી છે. ૩ તથા જંબુદ્વીપના મન્દર પર્વતની દક્ષિણ દિશામાં જે ચકવર પર્વત છે તે પર્વત પર આઠ ચકકૂટ કહ્યા છે. તેમનાં નામ આ प्रमाणे -(१) ४, (२) iयन, (3) ५५, (४) नलिन, (५) , (६) ४ि२, (७) वैश्रम, मने (८) वैडू. मा ale मा कूट। ५२ माथा શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫
SR No.006313
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages737
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size39 MB
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