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________________ ૪૦ स्थानाङ्गसूत्रे पवया पण्णत्ता, तं जहा - चुल्लहिमवंते १, जाव मंदरे ७| धायइसंडदविपुरस्थिमद्धे णं सत्तमहानईओ पुरत्थाभिमुहीओ कालोयसमुद्दे समुपैति तं जहा - गंगा १ जाच रत्ता ७ धायइसंदीपुरस्थिमद्धे णं सत्त महानईओ पञ्चत्थाभिमुहीओ लवसमुदं समप्पेंति, तं, जहा- सिंधू १ जाव रत्तवई ७ ॥ २ ॥ धायइसंडदीयपच्चस्थिमन्द्वे णं सत्त वासा एवं चेव, णवरंपुरस्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समप्र्पति, पच्चत्थाभिमुहोओ कालोयं समुदं समप्र्पति । सेसं तं चैव ॥ ३ ॥ पुक्खरवरदीपुरस्थिमद्धे णं सत्त वासा तहेव, णवरं पुरस्थाभिमुहीओ पुक्खरोदं समुद्धं समप्येति पच्चत्थाभिमुहीओ कालोदं समुदं समप्पेंति । सेसं तं चैव ॥ ४ ॥ एवं पच्चत्थिमद्धे वि, नवरं पुरस्थाभिमुहीओ कालोदं समुदं समप्र्प्पति । सवत्थ वासा वासहरपवया इओ य भाणिवा ॥ सू० १६ ॥ 15 छाया --- जम्बूद्वीपे द्वीपे सप्त वर्षाणि मज्ञप्तानि तथथा - भरतम् १, ऐरवतम् २, हैमवतम् ३, हैरण्यवतम् ४, हरिवर्षम् ५, रम्यकवर्षम् ६, महाविदेहः यह पूर्वोक्त कायक्लेशरूप तप मनुष्य लोक में ही होता है, इसलिये अब सूत्रकार मनुष्य लोककी और मनुष्यलोक गत वर्षधर पर्वत आदिकोंकी प्ररूपणा करते हैं- “ जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासा पण्णत्ता सूत्रार्थ - जम्बूद्वीप नामके द्वीपमें सात वर्ष क्षेत्र कहे गये हैं- जैसे भरत क्षेत्र १, ऐरवत क्षेत्र २, हैमवत क्षेत्र ३, हैरण्यवत क्षेत्र ४, हरिवर्ष क्षेत्र ५, रम्पक આગલા સૂત્રમાં જે કાયકલેશ રૂપ તપનું નિરૂપણ કર્યું' તેને સદ્ભાવ મનુષ્યલેાકમાં જ હાય છે, તેથી હવે સૂત્રકાર મનુષ્યલેાકની અને મનુષ્યાકના વર્ષધર પવતા આદિની પ્રરૂપણા કરે છે. "" 'जंबुद्दीवे दीवे सत्तवासा पण्णत्ता " इत्यादि - सूत्रार्थ-भूद्वीप नामना द्वीपमा सात वर्षक्षेत्र ह्यांछे – (१) भरतक्षेत्र, (२) भरपतक्षेत्र, (3) डैमपतक्षेत्र, (४) डेरएयपतक्षेत्र, (4) हर्षिक्षेत्र (4) श्री स्थानांग सूत्र : ०४
SR No.006312
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
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