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सुघा टीका स्था०५ उ०३ सू०१७ पञ्चविधसमितिनिरूपणम्
छाया। उत्कलतीत्युत्कल:=प्रवृद्ध इत्यर्थः । दण्ड उत्कलो यस्य सः, दण्ढेन या उत्कल इति विग्रहः । एवं राज्योत्फलादिष्यपि विग्रहो बोध्य ईति ॥ सू० १६ ।। ___उत्कटोऽनन्तरसूत्रे पञ्चविधः प्रोक्तः । स चासंयत एव । संयतस्तु समितिमिरेव उत्कटो भवतीति पञ्चविधाः समितीः प्राह
मूलम्-पंच समिईओ पण्णत्ताओ। तं जहा-ईरियासमिई १ भासासमिई २ जाव परिट्ठावणियासमिई ५॥सू० १७॥
छाया-पश्च समितयः प्रज्ञप्ताः । तयधा-ईर्यासमितिः १ भाषासमितिः २ यावत् परिष्ठापनिकासमितिः ५ ॥ मू० १७ ॥
टीका-पंच समिईओ' इत्यादि
समितयः-सम्यक् एकीभायेन इतयः प्रवृत्तयः, शोभनकाय परिणामयतथेष्टा। तो इस पक्षमें उत्कल शब्दका अर्थ प्रवृद्ध होता है, इस तरह दण्डसे जो उत्कल है, वह अथवा दण्ड जिसका उत्कल है, वह दण्डोत्कल है। इसी तरहसे राज्योत्कल आदिमें भी विग्रह जानना चाहिये। सू० १६।
इस अनन्तर स्त्र में जो यह उत्थर पांच प्रकारका कहा गया है, वह असंयतही होता है, तथा जो संयत होता है, वह तो समिति आ. दिसेही उत्कट होताहै, अतः अब सूत्रकार पांच समितियों का कथनकरते हैं ____ 'पंच समिईओ पण्णत्ताओ' इत्यादि सूत्र १७॥
टीकार्थ-समितियां पांच कही गईहैं जैसे-ईर्यासमिति भाषासमिति २ यावत्परिष्ठापनिका समिति ५ एकीभावसे जो प्रवृत्तियां उनका नाम समिति है, शोभन एकाग्र परिणामवाले की जो चेष्टाएँ हैं, वे
“उकल" मा पहनी सकृत छाया " उत्कल" सेपामा भावे, तो तना અર્થ “ પ્રવૃદ્ધ થાય છે. તે તેના દંડેકલ, રાજ્યકલ આદિ પાંચ પ્રકારો પડે છે. દંડની અપેક્ષાએ જે ઉકલ છે તેને અથવા જેને દંડ ઉત્કલ છે તેને દડેસ્કલ કહે છે. એ જ પ્રમાણે રાજ્યકલ આદિ વિષે પણ समायु: ॥ सू. १६ ॥
આગલા સૂત્રમાં જે પાંચ પ્રકારના ઉત્કટ કહ્યા તેઓ અસંયત જ હોય છે. સંયત સમિતિ આદિની અપેક્ષાએ જ ઉત્કટ હોય છે. તેથી હવે સૂત્રકાર पांय समितिमान ४थन २ छ. “पंच समिई ओ पण्णताओ" त्या
समिति पय ४ही -(१) या समिति, (२) मापासमिति, (3) मेष समिति, (४) RELA His भात्र निक्षेप समिति मने (५) परि. કાપનિકા સમિતિ.
श्री. स्थानांग सूत्र :०४