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________________ ६० स्थानानसूत्रे पुनः " चत्तारि पुरिसजाया " इत्यादि स्पष्टम् , एकः पुरुषो जानिसम्पन्नो भवति किन्तु नो बलसम्पन्नः-चोर्यसम्पन्नो न भवति १, एको बल सम्पन्नो भवति नो जातिसम्पन्नः २, एक उभयसम्पन्नः ३, एक उभयवर्जितो भवति, इति द्वितीया चतुर्भङ्गी । २।। " एवं जाईए रूवेण" इति–एवम् अमुना प्रकारेण जात्या सह रूपेण युक्ताश्चत्वार आलापका बोध्याः ? तथाहि-जातिसम्पन्नो नामैको नो रूपसम्पन्नः १, रूपसम्पन्नो नामैको नो जातिसम्पन्नः २, एको जातिसम्पन्नोऽपि रूपसम्प न्नोऽपि ३, एको नो जातिसम्पन्नो नो रूपसम्पन्नः ४। इति तृतीया चतुर्भङ्गो ३॥ "एवं जाईए सुएण' इति एवम् अनन्तरोक्तमकारेण जात्या सह श्रुतेन युक्ताश्चत्वार आलापकाः, तथाहि-जातिसम्पन्नो नामैको नो श्रुतसम्पन्नः १, फिरभी-पुरुषजाति चार कहे गये हैं जैसे-कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो जाति सम्पन्न होता है, पर बल सम्पन्न नहीं-१ अर्थात् वीर्य सम्पन्न नहीं होता है। कोई बलसम्पन्न है पर - जाति सम्पन्न नहीं-२ कोई एक उभय सम्पन्न होता है-३ और कोई एक उभयवर्जित होता है-४ एवं जाईए रूपेण-इत्यादि इसी प्रकार तरहसे जातिके साथ रूप ने युक्त चार आलापक जानना चाहिये, जैसे कोई एक पुरुष जातिसे सम्पन्न होता है पर रूपसे सम्पन्न नहीं-१ कोई एक रूपसे सम्पन्न होता है पर जाति सम्पन्न नहीं-२ कोई एक जाति और रूपसे भी सम्पन्न होता है-३ कोई एक न तोजाति सम्पन्न ही न रूप सम्पन्न हीहोता है. ४ " एवं जाईए सुएण" इसी तरहसे जातिसे श्रुतसे युक्त चार आलापक होते हैं, जैसे कोई एक पुरुष નીચે પ્રમાણે પણ ચાર પ્રકારના પુરુષો કહ્યા છે–(૧) કોઈ એક પુરુષ उत्तम जतिसपन्न डाय छे ५५ सपन्न (वीय पन्न) होता नथी. (२) કઈ બળસંપન્ન હોય છે પણ જાતિસંપન્ન હોતો નથી. (૩) કોઈ બળસંપન્ન અને જાતિસંપન્ન હોય છે. (૪) કેઈ બળસંપન્ન પણ હોતું નથી અને જાતિસંપન્ન પણ હેત નથી. | ૨ “एवं जाईए रूयेण" मे प्रभारी जतिनी साये ३५॥ योगथी यार વિકપ બને છે, જેમકે (૧) કેઈ એક પુરુષ જાતિસંપન્ન હોય છે, પણ રૂપસંય હોતું નથી (૨) કોઈ રૂપસંપન્ન હોય છે પણ જાતિસંપન્ન હોત નથી (૩) કઈ જાતિસંપન્ન પણ હોય છે અને રૂપસંપન્ન પણ હોય છે. (૪) કઈ જાતિસંપન્ન પણ હેતે નથી અને રૂપસંપન્ન પણ હેત નથી. ૧૩ “एवं जाईए सुएण" मे प्रमाणे ति अन श्रुतना योगयी नाय પ્રમાણે ચાર ભાંગા બને છે––(૧) કેઈ એક પુરુષ જાતિસંપન હોય છે, श्री. स्थानांग सूत्र :03
SR No.006311
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size37 MB
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