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सुधा टीका स्था०४ उ०४ सू०२४ कुंभदृष्टान्तेन पुरुषजातनिरूपणम् ४०५ ___ " एवामेव चत्तारि पुरिसजाया” इत्यादि - एवमेव-उक्तकुम्भवदेव पुरुषजातानि चत्वारि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-मधुकुम्भो नामैको मधुपिधानः १, मधुकुम्भो नामैको विषपिधानः २, विषकुम्भो नामैको मधुपिधानः ३, विषकुम्भो नामैको विषपिधानः ४ । एतद्भङ्गचतुष्टयस्यार्थ गाथाचतुष्टयेन विशदयति" हिययमपाव " मित्यादि, आसां मूलोक्तानां चतसृणां गाथानां व्याख्या सुगमा ॥सू० २४॥ होताहै, और मधुके पिधान-ढक्कनवाला होताहै ३। तथा कोई एक कुम्भ ऐसा होता है जो विषसेही भरा रहता है और विषकेही ढक्कनवाला होता है ४
" एवामेव चत्तारि पुरिसजाया" इत्यादि-इसी तरहसे पुरुषजात भी चार कहे गये हैं-जैसे कोई एक पुरुष ऐसा होताहै, जो मधुकुम्भके जैसा होता है, और मधुपिधान-ढक्कनवाला होता है । कोई एक पुरुष ऐसा होताहै-जो मधुकुम्भ जैसा होता हुआ भी विष पिधानवाला होता है । कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो विषकुम्भ जैसा होता हुआ भी मधुपिधानवाला होता है । और कोई एक पुरुष ऐसा होताहै, जो विष. कुम्भ जैसा होता है और विषपिधानवाला होता है इन चार भङ्गोंका अर्थ 'हिययमपावमकलुसं' इन गाथाओं द्वारा इस प्रकारसे विशद किया गया है-जिस पुरुषका हृदय पापरहीत और कलुषताहीन होताहै, और जिता जिसकी मधुरभाषिणी होती है वह पुरुष मधु पिधानवाले मधु. कुम्भके जैसा कहा गया है १ हिययमपावमकलुस जीहावि इत्यादि जिसका हृदय पापविहीन और कलुषताहीन होताहै परन्तु जिहाजिसकी कटुकभाषिणी होतीहै वह विषपिधानवाले मधुकुम्भके जैसा कहा छ, पण भषयी पात्र तना ५२ dise! ३५ २डे डाय छे. (४) એક કુંભ વિષથી ભરેલું હોય છે, અને તેનું ઢાંકણું પણ વિષપૂર્ણ પાત્ર જ હોય છે.
"एवामेव चत्तारि पुरिसजाया " त्याह-मे प्रमाणे पुरुषांना ५५ ચાર પ્રકાર કહ્યા છે. (૧) કોઈ એક પુરુષ મધુકુંભ સમાન હોય છે અને મધુપિધાન (મધુયુત ઢાંકણાવાળા) વાળ હોય છે. જે પુરુષનું હદય પાપહીને અને કલુષતાહીન હોય છે અને જેની જીભ મધુરભાષિણી હોય છે એવા પુરુષને મધુપિધાનયુક્ત મધુકુંભ સમાન ગણવામાં આવે છે.
(૨) કોઈ એક પુરુષ એ હોય છે કે જે મધુકુંભ સમાન હોવા છતાં પણ વિષપિધાનવાળો હોય છે. જે માણસનું હૃદય પાપહીન અને કલુષતાહીન હોય છે, પણ જેની વાણી કડવી અથવા અપ્રિય લાગે છે એવા પુરુષને વિષપિ ધાનવાળે મધુકુંભ સમાન કહ્યો છે.
श्री. स्थानांग सूत्र :03