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________________ सुधा टीका स्था०४७०३ सू० ४१ दृष्टान्तभेदनिरूपणम् २५७ अस्ति विद्यते नदिति लिङ्गभूतं धूमादिवस्तु इति कृत्या अस्ति वयादिरूपः साध्योऽर्थ इत्येवं हेतुरित्यनुमानम् १। द्वितीयभेदमाह-अत्थित्तं नस्थि सो हेऊ ' इति। अस्तित्वं नास्ति स हेतुरिति । अस्तिरतिरूपं वस्तु तस्मान्नास्ति वह्निविरुद्धः शीतादिरर्थ इत्यपि हेतुरनुमानम् २१ तृतीयभेदमाह-' नत्थित्तं अस्थि सो हेऊ' इति, नास्तित्वमस्ति सो हेतुः, तथा नास्तिवदयादिकोथै; अतः शीतकाले विद्यते शीतादिरर्थ इत्ययमपि हेतुग्नुमानम् ३। चतुर्थभेदमाह-नत्थित्तं नस्थि सो हेऊ ' इति, नास्तित्पं नास्ति स हेतुरिति । तथा नास्ति वृक्षरूपोऽर्थ इति नारित शिंशपारूपोप्यर्थः इत्यापि हेतुरनुमानमिति ४। ।। सू० ४१ ॥ उसे हेतु कह दिया गया है ऐसा यह अनुमान रूप हेतु चार प्रकारका है-इनमें प्रथम प्रकार " अस्ति तत् अस्त्यसौ" ऐसा है-इसका तात्पर्य ऐसा है कि एक अनुमान ऐसा हो. साधन के होने पर वह्नयादि रूप साध्यवाला होता है १ द्वितीय प्रकार " अस्ति तत् नास्त्यसौ" ऐसा होता है इसका भाव ऐसा है कि चह्निरूप वस्तुके होने पर यहि विरुद्ध शीतादि स्पर्शवाला नहीं होता है २ तृतीय प्रकार-" नास्तित्त्व अस्त्यसौ " ऐसा होता है इसका भाय ऐसा है कि वह्निके अभायमें शीतादि स्पर्शवाला होता है और चतुर्थ प्रकार-" नस्थि तं नत्यि" ऐसा होता है इसका भाव ऐसा है कि जहाँ वृक्षरूप अर्थका अभाव होता है वहां शिंशपारूप अर्थका भी अभाव होता है इस तरहसे ये सब हेतु अनुमानरूप होते हैं । तात्पर्य इसका ऐसाहै-" पर्वतोऽयं वह्निः मान् धूमवत्वात " यहां धूमवत्त्व हेतु प्रथम प्रकारवाला है “ अत्र शीतअस्यसौ" सेट से अनुमान से डाय छ १२ साधनना सदमा વમાં વદ્ધિ આદિ રૂપ સાધ્ય વાળું હોય છે. એટલે કે “ ધુમાડા રૂપ સાધનને સદૂભાવ હોય તે અગ્નિને પણ સદભાવ હોય છે,” આ પ્રકારના અર્થનું प्रतिपान ४२नहाय छ, भीने ५४२ प्रमाणे छ-"अस्ति नत् नास्स्यसौ” मेरो पहि३५ वस्तुना समायमा पहिव३६ शीतहि २५०पाडतु नथी. की प्रा२ मा प्रमाणे छ“ नास्तित्त्वं अस्त्यसौ” मेटले ४ पह्निना અભાવે શીતાદિ સ્પર્શવાળું હોય છે. या। प्रा२ मा प्रभारी छ-" नस्थि तं नस्थि" छ. मेरी है क्यों વૃક્ષ રૂપ પદાર્થને અભાવ હોય છે ત્યાં સંશપારૂપ (શીસમરૂપ) અર્થને પણ અભાવ હોય છે ? આ પ્રમાણે આ બધા હેતુ અનુમાન રૂપ હોય છે. मा समस्त थननु तात्रय नाय प्रमाणे छ-" पर्वतोऽयं वह्निमान् धमयत्वात् " गाडी धुभाना सहाय ३५ उतु प्रथम प्रा२पाणी छे. “ अत्र शीतस्पर्टी स-३३ श्री स्थानांग सूत्र :03
SR No.006311
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size37 MB
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