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स्थानानसूत्रे सम्पन्नः २, एको बलसम्पन्नोऽपि रूपसम्पन्नोऽपि ३, एको नो बलसम्पन्नो नो रूपसम्पन्नः ४। (१०) ___ "बलसंपन्नेण य जयसंपन्नेण य" इति-बलसंपन्नेन जयसंपन्नेन च सह पूर्ववचतुर्भङ्गी बोध्या, तथाहि-चत्वारः कन्यकास्तद्वचत्वारि पुरुषजातानि च भवन्ति, तद्यथा-बलसम्मन्नो नामैको नो ज यसम्पन्नः १, जयसन्पन्नो नामको नो बलसम्पन्नः २, एको बलसम्पन्नोऽपि जयसम्पन्नोऽपि ३, एको नो बलसम्पन्नो नो जयसम्पन्नः । ४ । (११) सम्पन्न होने पर भी बल सम्पन्न नहीं होता है २ शेष दो भङ्ग पूक्ति रूपसे ही जान लेना चाहिये ४ (१०)
ग्यारहावे सूत्र में जो "बल सम्पन्न और जय सम्पन्न" इन दो पदोंको जोडकर चतुर्भगी बनाई गई है वह इस प्रकारसे है जैसे-कोई एक कन्धक ऐसा होता है जो बल सम्पन्न हुआ भी जय संपन्न नहीं होता है १ कोई एक कन्धक जय संपन्न हुआ भी बल संम्पन्न नहीं होता है २ तथा कोई एक कन्धक बल संपन्न भी होता है और जय संपन्न भी होता है ३ और कोई एक कन्धक न बल सम्पन्न होता है और न जय सम्पन्न होता है । इसी तरहसे कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो बलसम्पन्न होने पर भी जय सम्पन्न नहीं होता है १ कोई एक ऐसा होता है जो जय सम्पन्न होने पर भी बल सम्पन्न नहीं होता है २ तथा कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो बल सम्पन्न होता है और जय सम्पन्न भी होता है ३ और कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो न बल सम्पन्न (२) अ से पुरुष ३५स ५-न डाय छ ५५५ मतसपन्न डात नथी. (3) કઈ ઉભયસંપન્ન હોય છે અને (૪) કેઈ ઉભયથી રહિત હોય છે.
અગિયારમાં સૂત્રમાં બલસંપન અને સંપનના વેગથી કર્થીક વિષયક ચાર ભાંગા આ પ્રમાણે બને છે –(૧) કોઈ એક કન્થક બલસંપન્ન હોવા છતાં પણ જયસંપન્ન હેતે નથી. (૨) કોઈ એક કથક જય સંપન્ન હોય છે પણ બલસંપન્ન હોતું નથી. (૩) કેઈ એક કન્જક બળસંપન્ન પણ હોય છે અને જયસંપન્ન પણ હોય છે (૪) કોઈ એક કન્થક બલસંપન્ન પણ નથી હતો અને જયસંપન્ન પણ નથી હોતો.
એજ પ્રમાણે દાન્તિક પુરુષના પણ નીચે પ્રમાણે ચાર પ્રકાર પડે છે–(૧) કેઈ એક પુરુષ બલસંપન્ન હોય છે, પણ જયસંપન હેતે नथी. (२) यस ५-न डाय छ ५७ मतस-न डात नथी. (3) आध
श्री. स्थानांग सूत्र :03