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________________ सुघा टीका स्था०४३०३ सू०३० कन्थकहष्टान्तेन पुरुषजातनिरूपणम् १७९ " एवं कुलसंपण्णेण य वलसंपण्णेण य ४" इति-एवं-यथा-जातिसम्पन्नेन जयसम्पन्नेन च सह चतुर्भङ्गो प्रोक्ता तथा-कुलसम्पन्नेन च बलसम्पन्नेन च चतुभङ्गी भणनीया, तथाहि-चत्वारः कन्थकास्तद्वत् चत्वारि पुरुषजातानि च भवन्ति, तद्यथा-कुलसम्पन्नो नामैको नो बलसम्पन्नः १, बलसम्पन्नो नामैको नो कुलसम्पन्नः २, एकः कुलसम्पन्नोऽपि बलसम्पन्नोऽपि, ३, एको नो कुलसम्पन्नो नो बलसम्पन्नः । ४ । (७) " कुलसंपण्णेण य रूवसंपण्णेण य" इति-कुलसम्पन्नेन रूपसम्पन्नेन च सह चतुर्भङ्गी प्राग्वद्भणनीयाः, तथाहि-चत्वारः कन्थकाः-तद्वत् चत्वारि पुरु सातवें सूत्र में जैसी जातिसम्पन्न और जयसम्पन्न पदोंको जोडकर छठे सूत्रमें चतुर्भगी बनाई गई है वैसी है चतुर्भगी कुलसम्पन्न और बलसम्पन्न इन दो पदोंको जोड़कर बनाई गई है, जैसे कोई एक कन्थक ऐसा होता है जो कुलसम्पन्न होता हुआ भी बलसम्पन्न नहीं होता है १ कोई एक कन्थक बलसम्पन्न हुआ भी कुलसम्पन्न नहीं होता २ कोई एक कन्थक उभयसम्पन्न भी होता है ३ और कोई एक कन्धक ऐसा होता है जो न कुलसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न होता ४ इसी प्रकारसे पुरुषों में भी कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो कुलसम्पन्न होता हुआ भी बलसम्पन्न नहीं होता है १ कोई एक ऐसा होता है जो बल सम्पन्न होने पर भी कुल सम्पन्न नहीं होता २ कोई एक ऐसा होता है जो उभयसम्पन्न होता है ३ और कोई एक ऐसा भी होता है जो उभय सम्पन्न नहीं भी होता है ४ (७) સાતમા સૂત્રમાં કન્થક–અશ્વના નીચે પ્રમાણે ચાર પ્રકાર કહ્યા છે(૧) કેઇ એક કન્યક કુલસંપન્ન હોય છે, પણ બલસંપન્ન હેત નથી. (૨) કેઈ એક કન્થક બલસંપન્ન હોય છે, પણ કુલસંપન્ન હોતો નથી. (૩) કેઈ એક કન્યક કુલ સંપન્ન પણ હોય છે અને બલસંપન્ન પણ હોય છે અને (૪) કઈ એક કન્યક કુલ સંપન પણ હેત નથી અને બલસંપન પણ હોતો નથી. એ જ પ્રમાણે દાર્જીન્તિક પુરુષના પણ નીચે પ્રમાણે ચાર પ્રકાર પડે છે– (૧) કે પુરુષ કુલ સંપન્ન હોય છે, પણ બલસંપન્ન હોતો નથી, (२) ५२५ मत पन डाय छ, ५५ सपन्न त नथी. (3) अ કલસંપન્ન પણ હોય છે અને બલસંપન્ન પણ હોય છે. (૪) કઈ કુલસંપન્ન પણ હેતું નથી અને બલસંપન્ન પણ હોતું નથી, श्री स्थानांग सूत्र :03
SR No.006311
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size37 MB
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