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________________ स्थानाङ्गसूत्रे १५८ अत्रेदं वोध्यं--सामान्य नै केनेति नपुंसकलिङ्गनिर्दिष्टस्य माययेति विवरणे मायारूपेण वस्तुना -- पदार्थेनेति लिङ्गसाम्येन भिन्नलिङ्गताशङ्काऽपनोदनीया (मु० २९) अथ कन्थकदृष्टान्तमूत्रम् - मूलम्-चत्तारि कंथगा पण्णत्ता, तं जहा-आइन्ने णाममेगे आइन्ने १, आइन्ने णाममेगे खलुके २, खलुंके गाममेगे आइन्ने ३, खलुंके णाममेगे खलुंके ४॥ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आइन्ने णाममेगे आइन्ने चउभंगो। (१) __ चत्तारि कंथगा पण्णत्ता, तं जहा-आइन्ने णाममेगे आइ. न्नयाए विहरइ १, आइन्ने णाममेगे खलंकत्ताए यिहरइ ४। एवामेव चत्तांरि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आइन्ने णाममेगे आइन्नयाए विहरइ, चउमंगो। (२) यदि यहां पर ऐसी आशंका की जाय कि " एकेन" यह शब्द सामान्य रूपसे निर्दिष्ट हुआ है और जो सामान्य रूपसे निर्दिष्ट होता है वह नपुंसक लिङ्ग होता है अतः जब ऐसी बात है तो फिर आप "एकेन' से "मायया" ऐसा विवरण कैसे करते हैं तो इसका समाधान इस रूपसे कर लेना चाहिये कि " एकेन माया रूपेण वस्तुना " एक-माया रूप बस्तुसे इस प्रकारसे माया वस्तुके साथ लिङ्ग साम्यता आजाने से भिन्नलिङ्गताकी शङ्का दूर हो जाती है ।सू. २९॥ --" एकेन" मा ५४ । नपुसलिंगनू ५४ छ. छतi मा५ ते ५६ द्वारा " मायया" 'भायाथी म प्रारना सीसिंग वाय शहनवी રીતે ગૃહીત કરે છે? उत्तर--डी " एकेन मायारूपेण वस्तुना" 'भायाथी' मा ५६ માયારૂપ એક વસ્તુથી ” આ પ્રકારના અર્થનું વાચક છે. આ રીતે માયારૂ૫ વસ્તુની સાથે લિંગની સમાનતા આવી જવાથી ભિન્ન ભિન્ન લિંગતાની तुं निवारण 25 . ॥ सू. २८ ॥ श्री. स्थानांग सूत्र :03
SR No.006311
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size37 MB
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