SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शुद्धि पत्र सुज्ञ पाठकगण ___ सविनय निवेदन है कि शास्त्रोंमें मुफ और मिटिंग सम्बन्धी कई गलती होना संभवित हैं, जो सुज्ञ वाचकबन्द नीरक्षीर न्याय से समझ कर पहले गे, पर जो शास्त्रीय गलती रह गई है जो देखनेमें अगर सुज्ञ वाचकजन द्वारा दृष्टिगोचर हुई हैं, इनका शुद्धिपत्र देने में आता है। सूत्रका नाम पृ. पति अशुद्ध । समवायङ्ग मूत्र १६४ ५ रापः खलु बलदेवो रामः खलु बलदेवो द्वादश वर्ष ) द्वादश वर्षशतानि सहस्राणि 5 सर्वायुषं सर्वायुषं १६ बारह हजार वर्ष-बारहसौ वर्ष ૨૮ બાર હજાર વર્ષ– બાર વર્ષ ज्ञातधर्मकथाङ्ग सूत्र २६१ १ पहली पंक्ति त्रैमासिकी पद छट भा. २ पूरी होने पर गया है सो त्रैमा. सिकी यह पद बढाकेपढ़ें ज्ञातधर्मकथाङ्ग सूत्र २६१ ११ आठवीं भिक्षुपतिमाके अनन्तर प्रथम सातदिकरात प्रमाणयाली नवी भिक्षुप्रतिमा यह पाठ छूटा है सो 'नयीं भिक्षु पडिमा' वहां इतना झोड के पढ़ें ज्ञातधर्म कथाङ्गसूत्र भा. ३ ३९७ १७ प्रवचनसिद्ध प्रवचनविरुद्ध ૨૧ પ્રવચનસિદ્ધ પ્રવચનવિરુદ્ધ . श्री. स्थानांग सूत्र :03
SR No.006311
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy