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समुद्घातके स्वरूपका निरूपण
४८१लब्धिके स्वरूपका निरूपण भगवान महावीरके पूर्वधरोंका निरूपण कल्पोंके स्वरूपका निरूपण
४८४समुद्ररूप क्षेत्रका निरूपण
४८५-४८६ कषायों के स्वरूपका निरूपण
४८७-४९० कर्मपुद्गलों के चयनादि निमित्तोंका निरूपण ४९१-४९४
पांचवें स्थानका पहला उद्देशा पांच प्रकारके महाव्रतोंका निरूपण
४९५-५०३ वर्णादिका निरूपण
५०४-५११ संयमके विषयभूत एकेन्द्रिय जीवोंका निरूपण ५१२-५१४ अवधिदर्शनके क्षोभके कारणोंका निरूपण ५१५-५२१ केवलज्ञान दर्शनमें क्षीभ न होनेका निरूपण
५२२ नैरयिक आदिकोंके शरीरका निरूपण
५२३-५३० शरोरगतधर्मविशेषका निरूपण
५३१-५५२ निर्ग्रन्थोंको महानिर्जरादिकी प्राप्ति के कारणका निरूपण ५५३-५५५ आज्ञाके अविराधनके कारणका निरूपण
५५६-५६१ पांच प्रकारके विग्रहस्थानका निरूपण
५६२-५६८ विषद्यादि स्थानों का निरूपण
५६९-५७१ देवोंके पांच प्रकारका निरूपण
५७१-५७२ देवों के परिचारणाका निरूपण
५७३-५७५ देवों के अग्रमहिषियोंका निरूपण
५७५चमरेन्द्रादिकों के अनीक और अनीकाधिपतियोंका
निरूपण ५७६-५८४ प्रतिघातका निरूपण
५८५-५८८ उत्तरगुणोंके भेदोंका निरूपण परीषह सहनेका निरूपण
५९०-६०२ हेतु और अहेतुके स्वरूपका निरूपण
६०३-६१० तीर्थकरोंके चयनादिका निरूपण
६११-६१८ ॥ समाप्त ॥
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श्री. स्थानांग सूत्र :03