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________________ सुधा टीका स्था०४ उ० १ ० १८ पुरुषस्वरूपनिरूपणम् ५०१ अप्पणो णाममेगे वजं उक्सामेइ णो परस्स० ४॥ ४॥ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अब्भुटेइ णाममेगे णो अब्भुट्ठावेइ ४॥ ५॥ एवं वंदइ णाममेगे णो वंदावेइ ४॥ ६॥ एवं सकारेइ ७, सम्माणेइ ८, पूएइ ९, वाएइ १०, पुच्छइ ११, पडिपुच्छइ १२, वागरेइ १३, सुत्तधरे गाममेगे णो अस्थधरे १, अस्थधरे णाममेगे णो सुत्तधरे २, सुत्तधरे णाममेगे अत्थधरे वि ३, णो सुत्तधरे णाममेगे णो अत्थधरे वि ४॥ १४॥ ॥ सू० १८॥ __छाया-चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-आपातभद्रको नामैक: संवासभद्रकः १, संवासभद्रको नामैको नो आपातभद्रकः २, एक आपातभद्रकोऽपि संवासभद्रकोऽपि ३, एको नो आपात भद्रको नो वा संवासभद्रकः ४।१। चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-आत्मनो नामैकोऽवयं पश्यति नो परस्य १, परस्य नामैकोऽयं पश्यति नो आत्मनः २, आत्मनो नामैकोऽवध पश्यति परस्यापि ३, आत्मनो नामैकोऽवद्य नो पश्यति नो परस्यापि ४।२। पुरुष अधिकार को लेकर ही अब सूत्रकार अन्य प्रकार से १४ पुरुष सूत्रों का कथन करते हैं-"चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता" इत्यादिसूत्रार्थ-पुरुषजात चार कहे गये हैं जैसे-आपातभद्रक संवास भद्रक १ संवासमद्रक नो आपातभद्रक २ आपातभद्रकभी संवासभद्रकभी३ औरनो आपातभद्रक नो संवासभद्रक ४ । (प्रथम) १ चार पुरुषजात कहे गये हैं, जो अपना अवद्य-पाप देखता है, पर का नहीं-१ जो दूसरों का अवद्य देखता है अपना नहीं-२ जो अपना भी दूसरों का भी अवद्य પુરુષ અધિકાર ચાલુ છે, તેથી સૂત્રકાર હવે પુરુષ વિષયક ૧૪ સૂત્રનું नि३५ ४२ छ-" चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता" इत्याहि પુરુષના ચાર પ્રકાર કહા છે–-(૧) આપાત ભદ્રક–ને સંવાસ ભદ્રક, (२) पास सद्र-न। आपात स, (3) मापात स-सपास ल भने (૪) ને આપાત ભદ્રક-નો સંવાસ ભદ્રક. ૧ | નીચે પ્રમાણે પણ ચાર પ્રકારના પુરુષે કહ્યા છે–(૧) પિતાના અવદ્ય (५५) ने ना२-मन्या आपने नही नार, (२) मन्यनु या ना२, પિતાનું નહીં જોનાર, (૩) પિતાનું પાપ પણ જેનાર અને અન્યનું પાપ પણ શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨
SR No.006310
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages819
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size47 MB
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