________________
स्थानाङ्गसूत्रे
,
छाया - त्रिविधा ऋद्धिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा - देवर्द्धिः, राजर्द्धिः, गणिऋद्धिः | १ | देवर्द्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-विमानर्द्धिः, विकुर्वणद्धिः परिचारणर्द्धिः । २ । अथवा देवर्द्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - सचित्ता, अचित्ता मिश्रिता | ३ | राजर्द्धिस्त्रिविधा मज्ञता, तद्यथा - राज्ञोऽतियानर्द्धिः राज्ञो निर्याणद्धिः राज्ञो बलवाहनकोषकोष्ठागारर्द्धिः । ४ । अथवा राजर्द्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता - तद्यथा - सचित्ता अचित्ता मिश्रिता । ५ । मणिऋद्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - ज्ञानर्द्धि:, दर्शनर्द्धिः, चारित्रर्द्धिः । ६ । अथवा गणिऋद्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा सचित्ता, अचित्ता मिश्रिता । ७ । सू० ८१ ॥
२९८
"
इस प्रकार से अभिसमागमके सम्बन्ध में कथन किया यह अभिसमागम ज्ञानरूप ही होता है, और ज्ञान ऋद्धिरूप होता है, अतः अब सूत्रकार सभेद ऋद्धि की प्ररूपणा सात सूत्रों द्वारा करते हैं " तिचिहा हड्डी पण्णत्ता " इत्यादि ।
सूत्रार्थ ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है जैसेदेवद्धि राजद्धि और गणिऋद्धि, इनमें भी जो देवद्धि है वह भी तीन प्रकार की कही गई है, जैसे- विमानद्धिं विकुर्वणद्धि, और परिचारणद्धि, अथवा - इस तरह से भी देवऋद्धि के तीन भेद है, सचित्त-अचित्त और मिश्रित ३ राजर्द्धि के भी तीन भेद कहे गये हैं, जैसे-राजा की अतियानर्द्धि राजा की निर्याणद्धि, राजा की बलवाहन कोष कोष्टागारद्धि ४ अथवा इस प्रकार से राजर्द्धि के तीन भेद कहे गये हैं, जैसे- सचित्त अचित्त और मिश्रित ५ गणिऋद्धि भी तीन प्रकार की कही गई है, जैसे ज्ञानद्धि दर्शन और चारित्रद्धि ६ अथवा इस प्रकार से भी
આ પ્રમાણે અભિસમાગમનું નિરૂપણ થયું. તે અભિસમાગમ જ્ઞાન રૂપ જ હૈાય છે અને જ્ઞાન ઋદ્ધિરૂપ હાય છે. તેથી હવે સૂત્રકાર સાત સૂત્ર દ્વારા ऋद्धिना लेहोनी अ३प अरे छे. " तिविहा इड्ढी पण्णत्ता " त्याहि
सूत्रार्थ-ऋद्धि त्राणु प्रहारनी उही छे - (१) हे वर्द्धि, रामद्धि भने (3) गणिऋद्धि તેમાંની જે દેવદ્ધિ છે તેના નીચે પ્રમાણે ત્રણ પ્રકાર પડે છે (૧) વિમાનરૂપ ऋद्धि, (२) पिठुवा ऋद्धि भने (3) परियारशा ऋद्धि.
દેવદ્ધિના આ પ્રમાણે ત્રણ પ્રકાર પણ પડે છે–(૧) સચિત્ત, (૨) यत्ति भने (3) भिश्रित.
રાજદ્ધિના પણ નીચે પ્રમાણે ત્રણ ભેદ કહ્યા છે–(૧) રાજાની અતિયાનદ્ધિ, (२) राजनी निर्याशुद्धि, (3) रामनी जलवाहन अष्ठागारद्धि अथवा शर्द्धिना नीचे प्रमाणे त्रक्षु प्रहार यशु पडे हे - (१) सत्ति, (२) व्यत्ति भने (3) मिश्रित,
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨