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________________ सुधा टीका स्था०३ उ. २०३१ चमरादीनां परिषदोनिरूपणम् छाया - चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य तिस्रः परिषदः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - समिता, चण्डा, जाता। आभ्यन्तरका समिता मध्यमिका चण्डा, बाह्यका जाता । चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य सामानि - कानां देवानां तिस्रः परिषदः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - समिता यथैव चमरस्य । एवं त्रायशिकानामपि । लोकपालानां तुम्बात्रुटिता पर्या । एवमग्रमहिषीणामपि । बलेरप्येवमेव यावत्-अग्रमहिषीणाम् | धरणस्य च सामानिकायस्त्रिंशकानां च शमिता, चण्डा, जाता । लोकपालानामग्रमहिषीणाम् ईशा त्रुटिता, दृढरथा, यथा धरणस्य तथा शेषाणां भवन वासिनाम् । कालस्य खलु पिशाचेन्द्रस्य पिशाचराजस्य तिस्रः परिषदः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - ईशा, त्रुटिता, दृढरथा । एवं सामानिकाग्रमहिषी सूत्रार्थ - असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की तीन परिषदाएँ कही गई हैं। जो इस प्रकार से हैं- समिता, चण्डा और जाता, आभ्यन्तर जो परिषदा है उसका नाम समिता है मध्यमिका जो परिषदा है उसका नाम चण्डा है और जो बाह्यपरिषदा है उसका नाम जाता है इसी तरह असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के जो सामानिक देव हैं उनकी भी तीन परिपदाएँ कही गई हैं उनका नाम भी पूर्वोक्तरूप से ही है इसी प्रकार से प्रायशिक देवों की भी इन्हीं नामों वाली तीन परिषदाएँ कही गई हैं। लोकपालों की तीन परिषदाओं के नाम तुम्बा, त्रुटिता और पर्वा है इसी प्रकार से जो अग्रमहिषियों की परिषदाएँ है उनके भी ये ही नाम हैं । बलिके परिषद भी यही नाम वाली है । धरण के जो सामानिक और त्रयत्रिंशक देव हैं उनकी भी परिषदाओं के शमिता, चण्डा और जाता ये ही नाम हैं तथा लोकपालों की जो अग्रमहिषियां सूत्रार्थ-असुरेन्द्र, असुरकुभारराय यभरनी ऋणु परिषहो उही छे - (१) समिता, (२) थौंडा भने (3) लता. माल्यन्तर परिषहने शमिता हे छे, मध्यभा પરિષદને ચંડા કહે છે અને ખાદ્ય પરિષદને જાતા કહે છે. એ જ પ્રમાણે અસુરેન્દ્ર, અસુરકુમારરાય ચમરના સામાનિક દેવાની પણ ત્રણ પરિષદો કહી તેમના નામ પણ ચમરની પરિષદો જેવાં જ છે. એ જ પ્રમાણે ચમરના ત્રાય સ્પ્રિંશક દેવાની પણ એ જ નામવાળી ત્રણ પરિષદો કહી છે. લેકપાલેાની ત્રણ પરિષદોનાં નામ તુમ્બા, ત્રુટિતા અને પર્યાં છે. અગ્રમહિષીઓની ત્રણુ પરિષદોનાં નામ પણ લેાકપાલેાની ત્રણ પરિષદો જેવાં જ છે. ખલીની પરિષદાના પણ એ જ ત્રણ નામેા છે. ધરણના જે સામાનિક અને ત્રાયસ્પ્રિંશક દેવા છે તેમની પિરષદનાં નામ પણ સમિતા, ચંડા અને જાતા શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨
SR No.006310
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages819
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size47 MB
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