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________________ ३४० स्थानानसूत्रे चेव, जाव वेमाणिया ६ । दुविहा गेरइया पण्णत्ता तं जहासइंदिया चेव अणिंदिया चेव, जाय वेमाणिया ७ । दुविहा णेरइया पण्णत्ता तं जहा-पजत्तगा एव, अपजत्तगा एव, जाप वेमाणिया ८ । दुविहा णेरइया पण्णत्ता तं जहा सन्नी चेव असन्नी चेय, एवं पंचिंदिया सव्वे विगलिंदियवजा जाय वाणमंतरा ९ । दुविहा रइया पण्णत्ता तं जहा-भासगा चेव अभासगा चेव, एवमेगिंदियवज्जा सव्वे जाय वेमाणिया १०॥ दुबिहा नेरइया पण्णत्ता तं जहा सम्मदिट्ठिया चेव मिच्छद्दिट्रिया चेय, एवं एगिदियवज्जा सव्वे जाव वेमाणिया ११ । दुविहा णेरइया पण्णत्ता तं जहा-परित्तसंसारिया चेव अर्णतसंसारिया चेव, जाव वेमाणिया १२ । दुविहा णेरइया पण्णत्ता तं जहा-संखेज्जकालसमयट्टिइया चेय असंखेज्जकालसमयट्टिइया चेय, एवं पंचिंदिया एगिदियविगलिंदियवज्जा जाव वाणमंतरा १३ । दुविहा णेरइया पण्णत्ता तं जहा-सुलभबोहिया चेव, दुलहबोहिया चेव। जाव वेमाणिया १४ । दुविहा णेरइया पण्णत्ता तं जहा-कण्हपक्खिया चेव सुक्कपक्खिया चेय, जाव वेमाणिया१५ । दुविहा णेरइया पण्णत्ता तं जहा-चरिमा चेव अचरिमा चेव, जाव वेमाणिया १६ ॥ सू० २३ ॥ छाया-द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्तास्तद्यथा-भवसिद्धिकाश्चैव अभवसिद्धिकाथैव, परम्परोपपन्नकश्चै वयाववैमानिकाः १। द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्तास्तद्यथा अनन्तरोपपनकाचैव यावद् वैमानिकाः २। द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्तास्तद्यथा-गतिसमापन्नकाश्चय अगतिसमापनकाश्चैव, यावद वैमानिकाः ३। द्विविधा नैरयिकः प्रज्ञप्तास्तद्यथा શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧
SR No.006309
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
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