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________________ मुघा टीका स्था० २ उ० १ सू० ११ समयद्वयोन्मादनद्वयनिरूपणम् २७७ __ 'जाव' इति इह यावच्छब्देन-दोहिं ठाणेहिं आया केवलं बोहिं बुज्झेज्जा' इत्यादि । 'जाव केवलनाणं उप्पाडेज्जा' इति पर्यन्तं बोध्यम् ॥ सू० १० ॥ केवलज्ञानं च कालविशेषे भवतीति तमाह मूलम्-दो समाओ पन्नत्ताओ। तं जहा-ओसप्पिणी समा चेय, उस्सप्पिणी समा चेव ॥ सू० ११ ॥ छाया-द्वे समे प्रज्ञप्ते । तद् यथा-अवसर्पिणी समा चैव, उत्सर्पिणी समा चैव ॥ सू० ११॥ टीका-'दो समाओ' इति । समा-कालविशेषः । अन्यत् सुगमम् ॥ सू० ११ ॥ और उपादेय के तत्त्वज्ञान से संपन्न बन जाता है जब आत्मा में हेयोपादेय का तात्त्विक ज्ञान जागृत हो जाता है तब आत्मा में एक प्रकार का ऐसा आत्मिक बल प्रकट होता है कि जिससे इसे परम संवेग उत्पन्न होता है "संसारात् भीतिसंवेगः" संवेग उत्पन्न होने से फिर यह धर्म को जीवन में उतारने की ऐसी दृढ इच्छा वाला बन जाता है कि जिससे वह अपनी शक्ति के अनुसार धर्म को ग्रहण ही कर लेता है यहां यावत्शब्द से " दोहि ठाणेहि आया केवलां बोहिं बुज्झेज्जा" इस पाठ से लेकर " जाव केवल नाणं उप्पा. डेज्जा" इस पाठ तक का ग्रहण हुआ है । सू० १०॥ केवलज्ञान कालविशेष में होता है इसलिये अब उसी कालविशेष को सूत्रकार कहते हैं-"दो समाओ पन्नत्ताओ" इत्यादि ॥११॥ समा नाम कालविशेष का है और यह कालविशेष उत्सर्पिणी યુક્ત બની જાય છે. જ્યારે આત્મામાં હેયે પાદેયનું તાત્વિક જ્ઞાન જાગૃત થઈ જાય છે ત્યારે આત્માની અંદર એક જાતનું આત્મબળ પ્રકટ થાય છે અને तेना द्वारा तेना मात्मामा ५२म सवेग उत्पन्न याय छे. “संसारात् भीति संवेगः" स त्पन्न वाथी ते मन वनमा तापाने निश्चयी બને છે. તેથી તે પિતાની શક્તિ અનુસાર ધર્મને ગ્રહણ કરી લે છે. અહીં " जाव ( यावत् " ५४थी "दोहि ठाणेहिं आया केवलां बोहि बुझेज्जा" । पाथी १३ शने “जाव केवलनार्ण उप्पाडेजा” मा सूत्रपा पय-तनी પાઠ ગ્રહણ કરવામાં આવ્યો છે. એ સૂત્ર ૧૦ છે કેવળજ્ઞાન કાળવિશેષમાં જ થાય છે, તેથી હવે સૂત્રકાર તે કાળવિશેષની ५३५९।। रे छ-"दो समाओ पण्णत्ताओ" त्याहि ॥ ११ ॥ विशेषतुं नाम " सभा' (समय) छ. ते विशेष मेले छ શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર :૦૧
SR No.006309
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
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