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॥श्रीवीतरागाय नमः ॥ श्रीजैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालबतिविरचितया
सुधाख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम्श्री-स्थानाङ्गसूत्रम् ॥
॥ मङ्गलाचरणम् ॥
(मालिनीवृत्तम् ) शिवमरुजममन्दं प्राप्तमानन्दकन्द,
दलितदुरितकन्दं नष्टकर्मारिवृन्दम् । विगतसकलतन्द्रं ज्ञानसान्द्रं मुनीन्द्रं.
भविककुमुदचन्द्रं नौमि वीर जिनेन्द्रम् ॥१॥
॥ स्थानाङ्गसूत्र का हिन्दी अनुवाद ॥ शब्दार्थ-शिवम् इत्यादि-(अरुजम् ) रोगरहित (आनन्दकन्दम् ) अव्यावाध आनन्द के उत्पत्तिस्थान, (अमन्दम् ) होनाधिकता से रहित ऐसे अद्वितीय (शिवम् ) मुक्ति धाम को (प्राप्तम् ) प्राप्त हुए (जिनेन्द्र वीरम् ) जिनेन्द्र वीर को अन्तिम तीर्थंकर श्री महावीर को मैं (नौमि ) नमस्कार करता हूं क्यों कि इन्होंने ( नष्टकर्मारिवृन्दम् ) आठ कर्मरूपी वैरियों को सर्वथा नष्ट कर दिया है (दलितदुरितकन्दम्) अतः ये अपने को संसाररूपी समुद्र में डुबोने वाले पापरूपी भार से बिलकुल रहित हो चुके हैं (विगतसकलतन्द्रम् ) तन्द्रारूप प्रमाद से
સ્થાનાંગસૂત્રને ગુજરાતી અનુવાદ शहाथ-- शिवम् ' छत्याहि-( अरुजम् ) १२हित, ( आनन्दकन्दम् ) भन्यायाध (४५ तनी माया हित ) मानतुं अपत्तिस्थान, ( अमन्दम ) हीनताथी २डित वा मद्वितीय-मनुपम ( शिवम् ) भुति घामने (प्राप्तम् ) भणे प्रात ४२८ छ (जिनेन्द्रम् वीरम् ) i जिनेन्द्र वीरनेमन्तिम तय ४२ महावीरने ( नौमि ) ई नभ२४१२ ४२ छ, ॥२५ तेमणे ( नष्टकर्मारिवृन्दम् ) मा ४३५शत्रुमानी सपथ नाश ४री नाये। छे (दलितदुरितकन्दम् ) भने ते ४२ तस सा२३पी समुद्रमा माउनार ५।५३पी माथी मिल २हित यु४या छ, ( विगतसकलतन्द्रम् ) तन्द्र।३५ प्रमाथी तेभरे पातानी २६॥ ४२री छे, (ज्ञानसान्द्र ) पणशान३५ ज्योति
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧