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________________ ૪૮ सूत्रकृताङ्गसत्र अन्वयार्थ:-(जे यावि) ये चापि (तहप्पगारं भुजति) तथापकारं मांस भुनते (ते) ते (अजाणमाणा) अजानानाः (पावं सेवंति) पापमेव सेवन्ते (कुसला) कुशलास्तु (एय मणं न करेंति) एतद् ईदृशं मनोऽपि न कुर्वन्ति (एसा वाया वि) एषा वागपि-मांसभक्षणं कर्तव्यमित्येवं रूपा (बुड्या) उक्ता (मिच्छा) मिथ्या-मिथ्येवेति।३९। टीका-'जे यावि' ये चापि 'तहप्पगारं' तथापकार-पूर्वगाथोक्तं मांसम् । 'भुति' भुञ्जते-भक्षणं कुर्वन्तीत्यर्थः 'ते अजाणमाणा पावं सेवंति' तेऽजानानाः -अज्ञानिनः पापमेव सेवन्ते, पापाचरणमेव हठेन कुर्वन्ति । 'कुसला एवं मणं न करेंति' कुशलाः-विवेकिनो नैतन्मनः कुर्वन्ति । ये तु-कुशलास्ते मांसभक्षणहैं, 'कुसला-कुशलाः' जो पुरुष कुशल हैं 'एयं मणं न करेंति-एतन्म नः न कुर्वन्ति' वे तो मांसभक्षण करने की इच्छा भी करते नहीं। 'एसा वायावि-एषा वागपि' मांस भक्षण करना चाहिए अथवा मांस भक्षण में दोष नहीं हैं, इस प्रकार 'वुझ्या-उक्ता' कहा हुआ-बचन भी 'मिच्छा-मिथ्या मिथ्या है ॥३९॥ ___ अन्वयार्थ-जो लोग पूर्वोक्त मांस का भक्षण करते हैं, वे अज्ञानी पाप का ही सेवन करते हैं। जो पुरुष कुशल हैं, वे तो मांसभक्षण करने की इच्छा तक नहीं करते । मांस भक्षण करना चाहिए या मांस भक्षण करने में दोष नहीं है, इस प्रकार का वचन भी मिथ्या है ॥३९।। टीकार्थ-पूर्वगाथा में कथित मांस का जो भक्षण करते हैं, वे अज्ञानी जन पाप का ही सेवन करते हैं हठपूर्वक पाप का आचरण करते हैं। विवेकवान् पुरुष हैं वे तो मांसभक्षण की इच्छा भी नहीं २५३५ १ छ, 'एय मणं न करें ति-एतत् मनः न कुर्वन्ति' ते तो भांस भक्षा ४२वानी छ। ५ ४२ता नथी, 'एसा वाया वि-एषा वागपि' भांसनु लक्षण ४२वु नये से अमायनी 'बुइया-उक्ता' हे पाशी ५१ 'मिच्छा-मिथ्या' मिथ्या छ. 1100 3८॥ અન્વયાર્થ—અજ્ઞાની એવા જે લોકે આ પહેલાં કહેવામાં આવેલ માંસનું ભક્ષણ કરે છે. તેઓ પાપનું જ સેવન કરે છે. જે પુરૂષ કુશળ છે, તેઓ તે માંસ ભક્ષણ કરવાની ઈચ્છા પણ કરતાં નથી. માંસ ભક્ષણ કરવું જોઈએ અથવા માંસ ભક્ષણ કરવામાં દેષ નથી. આવી રીતે કહેવામાં આવેલ વચન પણ પાપકારક જ છે. ૩૯ ટીકાર્થ–પહેલી ગાથામાં કહેવામાં આવેલ માંસનું જે ભક્ષણ કરે છે, તેઓ અજ્ઞાન અર્થાત પાપનું જ સેવન કરે છે, વિવેકી પુરૂષ તે માંસ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૪
SR No.006308
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages795
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size43 MB
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