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________________ समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ५ आचारश्रुतनिरूपणम् ___ अन्नयार्थः--(पत्थि आसवे संवरे बा) नास्ति आस्र:-माणातिपातादिरूपः कर्मबन्धकारणम् संवरः-आस्रतनिरोधलक्षणः, एतौ न स्तः (णेवं सन्नं णिवेसए) नैवं-नैवैतादृशी संज्ञां-बुद्धिं निवेशयेत्-कुर्यात् किन्तु (अस्थि आसवे संवरे वा) अस्ति आस्त्रवः संवरो वा (एवं सन्नं णिवेसए) एवमीही संज्ञां-बुद्धि निवेशयेत्-कुर्यादिति ॥१७॥ ___टीका--'आसवे संवरे वा णत्यि' आस्रव संवरो वा नास्ति, तत्रास्रवाआस्रवति-प्रविशति कर्म येन सः प्राणातिपातादिरूप आस्रवः-कर्मोपादानकारणम् तन्निरोधलक्षणः संवरः, एतौ न विद्यते, 'एवं' ईदृशीन 'सन्न' संज्ञा-बुद्धि 'ग' न 'णिवेसए' निवेशयेत्-धारयेत् । किन्तु-'आसवे संवरे वा अस्थि-आस्रवः 'णस्थि आसवे संवरे वा' इत्यादि । शब्दार्थ-'णथि आसवे संवरे वा-नास्ति आस्रवः संवरो वा' प्राणातिपात आदि कर्मबन्धका कारण आस्रव नहीं है अथवा आस्रवके निरोध रूप संवर नहीं है 'णेवं सन्नं निवेसए-नैव संज्ञा निवेशयेत्' ऐसी बुद्धि धारण करनी नहीं चाहिए ॥१७॥ ___ अन्वयार्थ--प्राणातिपात आदि कर्मबन्ध का कारण आस्रव नहीं है अथवा आत्र बनिरोध रूप संबर नहीं है, ऐसी बुद्धि नहीं धारण करना चाहिए, किन्तु आस्रव और संवर है, ऐसी बुद्धि धारण करना चाहिए।१७। टीकार्थ--जिसके द्वारा कर्म आत्मा में प्रवेश करते हैं, वह प्राणा तिपात आदि आस्रव कहलाता है। आस्रव का निरोध संबर है। इन दोनों की सत्ता नहीं है, इस प्रकार की बुद्धि रखना ठीक नहीं है, किन्तु आस्रव है और संवर है, ऐसी बुद्धि रखना ही उचित है। 'णत्थि आसवे संवरेवा' त्याह शहाथ:--'णस्थि आसवे संवरे वा - नास्ति आस्रवः संवरो वा' प्राणाति. પાત વિગેરે કર્મ બંધનું કારણ આસ્રવ નથી. અથવા આસવના નિરાધ રૂપ १२ नयी. 'णेवं सन्नं निवेसए-नैवं संज्ञां निवेशयेत्' के प्रमाणुनी भुद्धि ધારણ કરવી ન જોઈએ. ૧ળા અન્વયાર્થ–પ્રાણાતિપાત વિગેરે કર્મબંધના કારણ રૂપ આસ્રવ નથી. અથવા આમ્રવના નિરોધ રૂપ સંવર નથી. એવી બુદ્ધિ ધારણ કરવી ન જોઈએ. ૧ળા ટીકાર્થ–-જેના દ્વારા કર્મ આત્મામાં પ્રવેશ કરે છે, તે પ્રાણાતિપાત વિગેરે આસ્ત્ર કહેવાય છે, આમ્રવને નિરોધ-રોકવું તે સંવર છે. આ બનેની સત્તા નથી. આ પ્રમાણેની બુદ્ધિ ધારણ કરવી ઠીક નથી, પરંતુ श्री सूत्रता सूत्र : ४
SR No.006308
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages795
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size43 MB
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