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________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे मूलम्-गिह दीवमपासंता, पुरिसादाणिया नरा। ते वीरा बंधणुम्मुक्का, नावखंति जीवियं ॥३४॥ छाया--गृहे दीपमपश्यन्तः पुरुषादानीया नराः। ते वीरा बन्धनोन्मुक्ता नाऽवकांक्षन्ति जीवितम् ॥३४॥ अन्वयार्थ:--(गिहे दीवमपासंता) गृहे-गृहवासे दीपं-भावदीपं श्रुतज्ञानलाभात्मकम् अपश्यन्त:-अपाप्नुवन्तः (नरा) नराः (पुरिसादाणिया) पुरुषादानीयाः-पुरुषाणा-मुमुक्षूणाम् आदानीया:-आश्रयणीया भवन्ति (बंधणम्मुक्का ते चीरा) बन्धनोन्मुक्ताः बन्धनेन सबाह्याभ्यन्तरेण पुत्रकलत्रादिस्नेहेन प्राबल्येन मुक्ता बन्धनोन्मुक्ताः सन्तः (जीवियं) जीवितं-जीवनम् (नावकखंति) नावांक्षन्ति नाभिलपन्तीति ॥३४॥ 'गिहे दीवमपासंता' इत्यादि। शब्दार्थ--'गिहे दीवमपासंता-गृहे दीपमपश्यन्तः' गृहवासमें ज्ञान प्राप्ति का लाभ न देखते हुए 'पुरिसा दाणियानरा-पुराषादानीयाः नराः' मुमुक्षु पुरुषों के आश्रय लेने योग्य होते हैं 'वंधणुम्मुक्का ते वीरा-बंधनोन्मुक्ताः ते वीराः' बन्धन से मुक्त वे वीरपुरुष 'जीवियं-जीवितं' असं. यमी जीवनकी 'नावकंखंति-नावकांक्षन्ति' इच्छा भी नहीं करते हैं ॥३४॥ __ अन्वयार्थ गृह में दीपक न देखने वाले अर्थात् गृहस्थावस्था में श्रुतज्ञान का लाभ नहीं हो सकता, ऐसा सोचने वाले जो दीक्षा अंगीकार करके उत्कृष्ट गुणों को प्राप्त करते हैं, वे पुरुषों के आश्रयणीय बन जाते हैं बाह्य और आन्तरिक बन्धकों से अथवा पुत्र कलत्र आदि 'गिहे दीवमपासंता' त्यादि सहाय--गिहे दीवमपासंता-गृहे दीपमपश्यन्तः' डावासभा ज्ञान प्रातिना CIA न याथी 'पुरिसादाणिया नरा- पुरुषादानीयाः नराः' मुमुक्षु५३षांन। माश्रय सेवा योग्य गाय छे. 'बंधणुम्मुक्का ते वीरा-बंधनोन्मुक्ताः ते वीराः' अधिनयी भुत वा ते वी२ ५३५ 'जीविय-जीवित" असयम पनने 'नावखंति-नावकांक्षन्ति' छ। ५४ ४२ता नथी ।।३४॥ અન્વયાર્થ–ઘરમાં દીવાને પ્રકાશ ન જોનારાઓ અર્થાત ગૃહસ્થ અવસ્થામાં શ્રત જ્ઞાનને લાભ પ્રાપ્ત કરી શકાતું નથી એવા પ્રકારનો વિચાર કરવાવાળાઓ દીક્ષાને સ્વીકાર કરીને જે શ્રેષ્ઠ ગુણેને પ્રાપ્ત કરે છે, તેઓ પુરૂષના આશ્રય સ્થાન બની જાય છે. બાહ્ય અને આંતરિક એટલે કે–બહારના અને અંદરના श्री सूत्रतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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