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सूत्रकृताङ्गसूत्रे व्युत्सृष्टकायो भवेत् स एव माहन इति वा १, श्रमण इति वार, भिक्षुरिति वा३, निर्ग्रन्थ इति वा४, माहनादि विशेषणचतुष्टय युक्तः इति 'वच्चे' वाच्यः वक्तव्यो भवतीति भावः ॥मू० १॥
यो दान्तो द्रविको व्युत्सृष्ट कायः स एव माह नश्रमणभिक्षुनिन्थशब्देन वाच्यो भवतीति भगवता वर्णितं, तदुपश्रुत्य गणधरः पृच्छति--'पडिआहे' इत्यादि।
मूलम्-पडिआह-भंते ! कहं नु दंने दविए वोसटकाएत्ति वच्चे माहणेत्ति वा। समणेत्ति वा भिक्खूत्ति वा णिग्गंथेत्ति वा तं णो ब्रूहि महामुणी ॥सू०२॥
छाया--प्रत्याइ-भदन्त ! कथं नु दान्तो द्रविका व्युत्सृष्टकाय इति वाच्यःमाहण इति वा, श्रमण इति वा, भिक्षुरिति वा निम्रन्थ इति वा ? तन्नो ब्रूहि महामुने ।मु० २॥
टीका-भगवत्पतिपादित दान्तद्रविकादिमुनीनां लक्षणानि श्रोतुकामो गौतमः 'पडिआहे' प्रत्याह-कथितवान् 'भंते' हे भदन्त ! अथवा-मयान्त ! सर्वभयानाम्
इस प्रकार पूर्वोक्त पन्द्रह अध्ययनों में प्ररूपित अर्थ का आचरण करने वाला, इन्द्रियों का दमन करने वाला, संयमवान कायममत्व का त्यागी मुनि (१) माहन (२) श्रमण (३) भिक्षु और (४) निर्ग्रन्थ कह लाता है। उसे इन चारों विशेषणों से युक्त कहना चाहिए ॥१॥ ___ जो दान्त, द्रविक एवं व्युन्सृष्टकाय होता है, वह मोहन, श्रमण, भिक्ष और निर्ग्रन्थ शब्दों का वाच्य होता है, ऐसा भगवान् ने वर्णन किया है। उसे श्रवण करके गणधर प्रश्न करते हैं-'पडिआहे' इत्यादि ।
टीकार्थ-भगवान के द्वारा प्रतिपादित मुनि के दान्त द्रविक आदि लक्षणों को श्रवण करने के अभिलाषी गौतम ने कहा-'भंते?' हे भदन्त !
આ રીતે પૂર્વોક્ત પંદર અસ્થમાં પ્રરૂપણ કરેલ અર્થ-વિષયનું આચરણ કરનાર, ઇન્દ્રિયનું દમન કરવાવાળા સંયમવાન, શરીરના મમત્વથી रहित, भनि (१) माडन (२) श्रम (3) भिक्षु मन (४) निन्थ उपाय છે. તેને આ ચારે વિશેષણેથી યુક્ત કહેવા જોઈએ. ૧
रेहान्त, द्रविड, भने व्युत्सृष्टय य छे, ते भाडन, श्रम, म અને નિગ્રંથ શબ્દોથી કહેવાને એગ્ય હોય છે, એ પ્રમાણે ભગવાને વર્ણન रेख छ. तने सजी गएर ५ पूछे छे. 'पडिआह' छत्याल
ટીકાઈ–ભગવાન દ્વારા પ્રતિપાદન કરવામાં આવેલ મુનિના દાન્ત, દ્રવિક વિગેરે લક્ષણેને સાંભળવાની ઈચ્છાવાળા ગૌતમસ્વામીએ કહ્યું કે “મરે”
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૩