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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ९ धर्मस्वरूपनिरूपणम् संसारकारणमिति 'विन विद्वान् परिजाणिया' परिजानीयात्-अपरिज्ञया परिज्ञाय प्रत्याख्यानपरिज्ञया परित्यजेदिति ॥२०॥ मूलम्-आसंदी पलियंके य, णितिजं च गिहतरे। संपुच्छणं सरणं वा, तं विज्जं परिजाणिया ॥२१॥ छाया-आसन्दी पर्यई च, निषधां च गृहान्तरे । संपच्छनं स्मरणं वा, तद्विद्वान् परिजानीयात् ॥२१॥ अन्वयार्थ:-(आसंदी) आसन्दीम् (कुर्शी) इतिप्रसिद्धाम् (पलिपंके य) पर्यवं च (पलङ्ग) इति प्रसिद्धम् (गिहतरे णिसिज्नं च) गृहान्तरे-गृहिगृहमध्ये का उपयोग संसार का कारण हैं। मेधावी इस तथ्य को ज्ञपरिज्ञा से जान कर प्रत्याख्यान परिज्ञा से उनको त्याग दे ॥२०॥ 'आसंदों पलियंके य' इत्यादि। शब्दार्थ--'आसंदी-आसंदी' मंचिका, आदि आसन विशेष को तथा 'पलियंके य-पर्य के च' शयन योग्य आसन उसको 'गिहतरे णिसिज्ज च-गृहान्तरे निषद्याश्च'गृहस्थ के घर में बैठना 'संपुच्छणंसंप्रश्नम्' गृहस्थके घर में जाकर उसका कुशल पूछना 'सरणं चा-स्मरण वा' तथा अपनी पूर्व क्रिया का स्मरण 'त-तत्' ये सब 'विज्ज-विहान्' विद्वान् साधु 'परिजाणिया-परिजानीयात्' ज्ञपरिज्ञा से जानकर प्रत्याख्यानपरिज्ञा से उसका त्याग करे ॥२१॥ ___ अन्वयार्थ--आसंदी (एक प्रकार का कुर्सी शरीखा आसन) और पर्य क (पलंग) का सेवन करना तथा गृहस्थ के घर में बैठने से संयम વિગેરેને ઉપગ સંસારનું કારણ છે. મેધાવી પુરૂષ આ તથ્યને સમજ તથા જ્ઞપરિજ્ઞાથી સમજીને પ્રત્યાખ્યાન પરિજ્ઞાથી તેને ત્યાગ કરે મારા 'आसंदी पलियंके य' त्याह २०७४ाथ --'आसंदी-आसंदी' भायो मेरे सासन विशेष तथा पलियंके य -पर्य'क च' शयनने या२य मासनने 'गिहतरे णिसिज्जं च-गृहन्तिरे निषद्यां च' स्थन। घरमा सयु' 'संपुच्छणं-संप्रश्नम्' ७२थना धे२०४४२ तनाश समाया२ पूछ। 'सरणं वा-स्मरणं वा' तथा पातानी पूर्व यानु भ२९५ 'ततत' मा मधाने 'विज-विद्वान्' विद्वान् साधु 'परिमाणिया-परिजानीयात्' ५. રિણાથી જાણીને પ્રત્યાખ્યાન પરિજ્ઞાથી તેને ત્યાગ કરે ૨૧ स-याथ-सासही (मे मुसि २ मासन) मन पय:પલંગનું સેવન કરવું તથા ગૃહસ્થના ઘરમાં બેસવાથી સંયમની વિરાધના श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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