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________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे - - अन्वयार्थ:--(एगेसिं) एकेषां केषाश्चिद् वादिनाम् (आहियं) आख्यातंकथनमस्ति यत् देवा एव अशेषदुःखानामन्तं कुर्वन्तीति किन्तु न तथा संभवत्यतः (इह) जिनमवचने तीर्थकरादीनां कयनं यत् मनुष्या एव (दुक्खाणं) दुःखानां शारीरमानसानाम् (अंतं) अन्त-नाश (करंति) कुर्वन्ति नान्ये अन्यत्र देवादिभवे धर्माराधनस्यासंभवात् । अत्र विषये (एगेसिं पुण) एकेषां केषाश्चिद् गणधरादीनां रिक एवं मानसिक दुःखों का 'अंत-अन्तम' नाश 'करंति-कर्वन्ति' करते हैं अन्य देवादि भवमें धर्माराधन का अभाव है, अतः वे मोक्ष गति प्राप्त नहीं कर सकते हैं इस विषय में 'एगेसिं पुण-ए केषां पुनः' किसी गणधर आदि का 'आहियं-आख्यातम्' कथन है कि मनुष्यके विना 'अय-अयम्' आगे कहे जाने वाला 'ससुस्मए-मभुच्छ्यः ' जिन धर्म श्रवणादि रूप अभ्युदय भी 'दुल्लहे-दुर्लभः' दुर्लभ है फिर मोक्ष गमन की तो बात ही क्या है ॥१७॥ ___ अन्वयार्थ-किसी किसी का ऐसा कहना है कि देव ही समस्त दुखो का अन्त करते हैं किन्तु ऐसा हो नहीं सकता। जिनप्रवचन में तीर्थंकर आदि का कथन है कि मनुष्य ही शारीरिक एवं मानसिक दुःखों का अन्त कर सकते हैं। उनसे भिन्न कोई अन्य प्राणी नहीं कर सकता, क्योंकि देव आदिके भव में धर्म की आराधना असंभव है। किन्हीं गणधर आदि का कथन है कि समस्त दुःखों का अन्त अन्तम्' नाश 'करति-कुर्वन्ति' ३२ छे. अन्य हे विगेरेना ममा २ ધનને અભાવ છે. તેથી તેઓ મિક્ષ ગતિ પ્રાપ્ત કરી શકતા નથી. આ समयमा ‘एगेनिं पुण-एकेषां पुनः' / अध२ विगेरेनु 'आहियं-आख्यातम्' । छमनुष्य शिवाय 'अयं-अयम्' वे उवामां आना। 'समु. स्सए-समुच्छ्यः ' - धर्म श्रवाहि ३५ मन्युय ५४ 'दुल्लभे-दुर्लभः' દુર્લભ છે તે પછી મોક્ષગમનની તો વાત જ શી કરવી? ૧૭ ___-qया--- मे ४ छ --१४ सामान અંત કરે છે. પરંતુ એવું બની શકતું નથી પ્રવચનમાં તીર્થકર વિગેરેનું કથન છે કે મનુષ્ય જ શારીરિક અને માનસિક દુઃખને નાશ કરી શકે છે. તેનાથી ભિન્ન કે અન્ય પ્રાણિ તેમ કરી શકતા નથી. કેમકે દેવ વિગેરેના ભવમાં ધર્મની આરાધના અસંભવિત છે. કઈ કઈ ગણધર વિગેરેનું કથન श्री सूत्रतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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