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सूत्रकृताङ्गसत्रे नापितोपकरणविशेषः 'अंतेण' अन्तेन-पान्तभागेन 'वहई' वहति केशानपनयति । यथा 'चकं चक्रं रथचक्रम् 'अंतेण' अन्तेन-पान्तभागेन नेमिरूपेण 'लोट्टई' लुठति-चलति । यथा क्षुरस्य रथचक्रस्य च प्रान्तभागेनैव क्रियाकारित्वं भवति तथैव विषयकषायपर्यन्तवत्तित्वेनैव महामुनेरपि ज्ञानावरणीयाद्यष्टविधकर्मक्षपणेऽर्थक्रियाकाशिवं भवतीति ॥१४॥ म्लम्-अंताणि धीरा सेवंति तेण अंतकरा इहै ।
ईह माणुस्सए टाणे धम्ममाराहिलं जरा ॥१५॥ छाया-अन्तान् धीरा सेवन्ते तेनान्तकरा इह ।
इह मानुष्य के स्थाने धर्ममाराधयितुं नराः ॥१५॥
प्रान्त-भाग से केशोंको हटाता हैं अथवा जैसे चाक (पहिया) प्रान्तभाग से चलता है, उसी प्रकार महामुनि विषय कषाय से दूर रह कर ही ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्म के क्षपण की अर्थक्रिया कर सकता है ॥१४॥
'अंताणि धीरा सेवंति' इत्यादि।
शब्दार्थ--'धोरा-धीराः' परीषह और उपसर्ग को सहन करने वाले 'अंताणि-अन्तान्' अंत-प्रांत आहारका 'सेवति-सेवन्ते' सेबन करते हैं 'तेण-तेन' उस अन्तप्रान्त आहार के सेवन से 'इह-इह' इस संसार में 'अंतकरा-अन्तकराः' सर्व दुःखों के अन्त करनेवाले होते हैं अतः उस अन्तप्रान्त के आहार करने वाले 'णरा-नराः' पुरुष 'इह-इह' इस 'माणुस्सए ठाणे-मानुष्यके स्थाने' मनुष्य लोक में 'धम्म -અસ્ત્રો અંતભાગથી કેશને હટાવે છે, અથવા જેમ પૈડું અન્ત ભાગથી ચાલે છે, એજ પ્રમાણે મહામુનિ વિષય, કષાયથી દૂર રહીને જ્ઞાનાવરણીય વિગેરે આઠ પ્રકારના કર્મના ક્ષપણની અર્થ ક્રિયા કરી શકે છે. ૧૪
अंताणि धीरा सेवं ते' त्या6ि
शहाय-धीरा-धीराः' परीष भर ५सन सहन ४२वापामा 'अंताणि-अन्तान' मतांत माहारने 'सेवंति-सेवन्ते' सेवे छे. 'तेण-तेन' मे अन्त प्रांत मा२ना सेवनथी इह-इह' मा संसारमा 'अंतकरा-अन्तकराः' સર્વ દુબેને અંત કરવાવાળા થાય છે. અતઃ એ અંત પ્રાંતને આહાર કરin 'णरा-नराः' ५३५ 'इह-इह' मा 'माणुस्सए ठाणे-मानुष्यके स्थाने'
श्री सूत्रतांग सूत्र : 3