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________________ ५१० सूत्रकृताङ्गसूत्रे र्जरणोपायं च ज्ञपरिज्ञया ज्ञात्वा तत् प्रत्याख्यानपरिज्ञया परित्यजति पुनरकरणतया प्रत्याख्याति । एतेन किं भवतीत्याह येन कारणेन पापकर्मानाचरणरूपेण पूर्वकृतकर्मक्षपणरूपेण च स मुनि: 'न जायई' न जायते संसारे नोत्पद्यते न जन्म गृह्णाति 'न मिज्जई' न म्रियते न वा मृत्युं प्राप्नोति तस्याग्रे मोक्षसद्भावात, स जन्मजरामरणविप्रमुक्तो भूत्वा सिद्धिगतिनामधेयं स्थानं प्राप्नोतीति भावः ॥७ मूल-ण मिज्जई महावीरे जस्त नस्थि पुरे कडं । वाडव जल मश्चेति पियालोगंसि इत्थिओ ॥ ८॥ छाया - न म्रियते महावीरो यस्य नास्ति पुरा कृतम् । वायुरिव ज्वाला मत्येति मिया लोके स्त्रियः ॥८॥ अर्थात् पुनः न करने की प्रतिज्ञा करके प्रत्याख्यान कर देता है । ऐसा करने से क्या होता है ? पापकर्मों का आचरण न करने से तथा पूर्वकृत कर्मों का क्षय कर डालने से वह मुनि न संसार में जन्मता है, न को प्राप्त होता है । उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है । वह जन्म जरा मरण से सर्वथा मुक्त होकर सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त कर लेता है ||७|| मृत्यु 'ण मिज्जई महावीरे' इत्यादि । शब्दार्थ - 'जस्स- यस्य' जिसको ' पुरेकडं - पुराकृतम्' पूर्वभवो पार्जित कर्म 'नथि- नास्ति' नहीं है ऐसा वह 'महावीरे - महावीर पुरुष 'ण मिज्जई - न म्रियते' मरता नहीं है तथा उपलक्षण से जन्मता भी नहीं है अर्थात् जन्म मरण से मुक्त होता है कारणकी वह 'लोगंसि શુ થાય છે? પાપકર્મોનું આચરણ ન ક્ષય કરી નાખવાથી તે મુનિ સ'સારમાં પણ પામતે નથી. તેને મેક્ષ પ્રાપ્ત ભરણુથી સર્વથા મુક્ત થઇને સિદ્ધિ ગતિ કરવાથી તથા પહેલાં કરેલા કર્મોના જન્મ ધારણુ કરતા નથી તેમ મૃત્યુ થઈ જાય છે? તે જન્મ, જરા અને નામના સ્થાનને પ્રાપ્ત કરીલે છે. ઘણા 'पुरेकडं - पुराकृतम्' पूर्वभवोपात 'ण मिज्जइ महावीरे' इत्याहि शब्दार्थ ---' जस्स - यस्य' भेने भ' 'नत्थि - नास्ति' नथी थेवे। ते 'महावीरे - महावीर ः ' भडावीर ५३ष 'न उपलक्षथी बन्मतो पशु नथी. अर्थात् ते 'लोगंसि लोके' भगतभां 'पिया - मिज्जई - न म्रियते' भरतो नथी तथा जन्म भरष्णुथी भुक्त थाय छे, શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૩
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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