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________________ ४३८ सूत्रकृताङ्गसूत्र ___ अन्वयार्थः- (अस्सि) अस्मिन् गुरुकुले निवसन् शिष्यः (मुठिच्चा) सुस्थाय. समाधिरूपे मुक्तिमार्गे सम्यक् स्थित्वा (तिविहेण) त्रिविधेन-त्रिकरणत्रियोगेन (तायी) बायी-सकलजीत्राणकारको भवति (एएसु या) एतेषु च-समितिगुप्त्यादिषु विचरतः-संयतस्य (संति) शान्तिम्-समस्तक्लेशक्षयरूपाम् (निरोह) सुस्थाय' समाधि रूप मुक्ति मार्गमें सुचारु रूपसे निवास करनेवाला साधु 'तिविहेण-त्रिविधेन' त्रिकरण तीन योगसे 'तायी-त्रायो' समस्त जीवों का रक्षण करने वाला होता है 'एएसु-एतेषु' ये समिति और गुप्तिके पालन करनेवाले संयतको 'या संति-या शान्तिः सकल क्लेशक्षयरूप जो शान्ति है तथा 'निरोह-निरोधम्' अशेष कर्मक्षय रूप निरोध-कर्मका क्षय होना 'आहु-आहुः सर्वज्ञों ने कहा है वे कौन थे ? ऐसी जिज्ञासा में कहते हैं-तिलोगदंसी-त्रिलोकदर्शिनः' तिनों लोकके ज्ञाता 'ते-ते वे तीर्थंकरादि 'एवमक्खंति-एवमाचक्षते' इस प्रकारसे कहते हैं की भुज्ज ध-भूयश्च' फिरसे ‘पमायसंगं-प्रमादसङ्गम्' मदक षायादि संसर्ग को 'ण एयंतु-न यन्तु' प्राप्त न होवे ॥१६॥ ___ अन्वयार्थ-गुरुकुल में निवास करनेवाला शिष्य समाधि रूप सम्पर ज्ञान चारित्रात्मक मुक्तिमार्ग में सम्यक स्थित होकर त्रिकरण त्रियोग से सकल जीवों का त्राण कारक (रक्षक) होता है। मोक्षतत्व को जानने वाले विद्वान् सर्वज्ञ भगवान् तीर्थकर समिति गुप्ति आदि में समावि ३५नु भुतिमामा सुया३ ५४२थी निवास ४२वावा। साधु 'तिवि हेण-त्रिविधेन' ४ि२९५ त्रियोगमा 'तायी-त्रायी' वोनु २६९ ४२११ वाणे होय छे. 'एएसु-एतेषु' मा समिति भने गुलितनु पासन ४२१.पापा सयतने 'या संति-या शान्तिः' सोश क्षय ३५२ शान्ति छ तथा 'निरोह निराधम्' अशेष में क्षय ३५ निरोध अर्थात् भनी क्षय यथानु 'आहुआहः' सबज्ञासे धुं छे. ते सर्व अरहता ? मे ज्ञासा भाटेहेछ है-'तिलोगदंसी-त्रिलोकद शिनः' त्रणे ने पापा 'ते-ते' ये तिथ. शह 'एवमखं त-एवमाचक्षते' मेरीते छ है-'भूज य-भूयश्च' शथी 'पमायसंग-प्रमादसङ्गम्' मषाय विगेरे ससन 'ण एयंतु-न यन्तु' प्राप्त ન થાય ૧૬ અન્વયાર્થગુરૂકુળમાં નિવાસ કરવાવાળા શિષ્ય સમાધિ રૂ૫ સમ્યક જ્ઞાન ચારિત્રાત્મક મુક્તિમાર્ગમાં સુથિત થઈને ત્રણ કરણ અને ત્રણ વેગથી સકલ ના ત્રાણુ કારક (રક્ષક) થાય છે. મેક્ષ તત્વને જાણવાવાળા વિદ્વાન સર્વજ્ઞ ભગવાન્ તીર્થકર સમિતિ ગુપ્તિ વિગેરેમાં વિચરવાવાળા સંયમી સાધુને श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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