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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. शु. अ. ११ मोक्षस्वरूपनिरूपणम् २३७ प्रदत्तम्, न तु मनागपि स्वमनीषया कथितम् । 'त्ति' इति बेमि' ब्रवीमि यथा भगवत्समीपे श्रुतं तथा-कथयामीति ॥ ३८ ॥ ॥ इति श्री विश्वविख्यात - जगवल्लभ - प्रसिद्धवाचक- पञ्चदशभाषाकळितललितकला पालापकमविशुद्धगद्यपद्यनेकग्रन्थनिर्मापक, वादिमानमर्दक- श्री शाहच्छत्रपति कोल्हापुरराजमदत्त'जैनाचार्य' पदभूषित - कोल्हापुरराजगुरु - बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर - पूज्य श्री घासीलालवतिविरचितायां श्री " सूत्रकृताङ्गसूत्रस्य" समयार्थबोधिन्याख्यायां व्याख्यायां मोक्षनामकम् एकादशममध्ययनं समाप्तम् ॥११॥ प्रश्न किया था, उसका उत्तर मैंने तीर्थंकर के मतानुसार दिया है, अपनी बुद्धि से कुछ नहीं कहा । 'त्ति बेमि' जैसा तीर्थ कर के समीप सुना, उसी प्रकार मैं कहता हूँ ||३८|| जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजी महाराजकृत 'सूत्रकृतासूत्र' की समयार्थबोधिनी व्याख्या का मोक्षनामक ॥ ग्यारहवां अध्ययन समाप्त ॥ ११ ॥ પ્રશ્ન કરેલ હતા, તેનેા ઉત્તર મે તીર્થંકરાના મત પ્રમાણે આપેલ છે. મારી સ્વતંત્ર બુદ્ધિથી કંઈ પણ કહેલ નથી, 'त्ति बेमि' के प्रमाणे तीथ उरनी पांसेथी सांलज्यु हेतु गोप्रमाणे भे' उछु छे. ॥३८॥ જૈનાચાય જૈનધમ દિવાકર પૂજયશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત ‘સૂત્રકૃતાંગસૂત્ર’ની સમયાથ માધિની વ્યાખ્યાનું મેાક્ષ નામનું અગ્યારમું અધ્યયન સમાપ્ત ૫૧૧૫ श्री सूत्र तांग सूत्र : 3 - 品
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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