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________________ १७४ सूत्रकृतानसूत्रे पूर्वोपदर्शितरीत्या चतुर्दशभूतग्रामात्मकतया 'छक्काय' षड्जीवनिकाया। 'आहिया' आख्याता:-कथिताः केवलज्ञानिभिः । एतावए' एतावानेव इत्यन्त एवं संक्षेपतो जीवनिकायो भवति, 'णावरे' नापरः 'कोई' कश्चिज्जीवनिकाय: विज्जई' विद्यते-एतावानेव जीवसमुदायो नापरः एतद्व्यतिरिक्तः कश्चिदिति । पूर्वोक्ताः पृथिव्यादयः पञ्चजीवनिकायाः, षष्ठश्च त्रप्तरूपः । तीर्थकरैरेते एव जीवनिकायाः प्रतिपादिताः नाऽन्ये-एतद्व्यतिरिक्ताः सन्तीतिभावः ॥८॥ मूलम्-सव्वाहि अणुजुत्तीहिं, मइमं पडिलेहिया। सव्वे अकंतदुक्खा य, अओ सव्वे ने हिंसया ॥९॥ छाया-सर्वाभिरनुयुक्तिभि, मंतिमान् प्रतिलेख्य सर्वे अकान्तदुःखाश्च, अतः सर्वान् न हिस्यात् ॥९॥ छह प्रकार के हैं। पंचेन्द्रिय चार प्रकार के हैं संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्त, अपयप्ति । इस प्रकार सबको मिलाने से चतुर्दश प्रकार का भूतग्राम है। तीर्थंकर भगवान्ने इन छहों को ही षड्जीवनिकाय कहा है। इसके अतिरिक्त न कोई (संसारी) जीव है, न कोई जीवराशि है। ___तात्पर्य यह है कि पृथ्वीकाय आदि पांच और छठा त्रस जीवनि. काय हैं। इतने ही जीव हैं। इनके अतिरिक्त और कोई जीव नहीं हैं ॥८॥ 'सवाहि' इत्यादि। शब्दार्थ-'मइम-मतिमान्' बुद्धिमान पुरुष 'सम्माहिं अणुजुत्तीहिं -सर्वाभिरनुयुक्तिभिः' सब प्रकार की युक्तियों से 'पउिलेहिया-प्रतिसेएप' इन जीवों की सिद्धि करके 'सब्वे अकंतदुक्खा-सर्वे अकान्त પ્રકારના હોય છે. સંજ્ઞી, અસંસી, પર્યાપ્ત, અપર્યાપ્ત આ રીતે બધાને મળ. વવાથી ચૌદ પ્રકારના ભૂતગ્રામ છે. તીર્થકર ભગવાને આ છએને ષટૂછવનિકાય કહેલ છે. આ સિવાય કઈ (સંસારી) જીવ નથી. તેમ કોઈ જીવशशिर नथी. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–પૃથ્વીકાય વિગેરે પાંચ અને છઠ્ઠા ત્રણ જવનિકાય છે. તીર્થકરેએ આજ છ જવનિકાય કહેલ છે. આટલાજ જીવે છે. આ સિવાય અન્ય કેઈ પણ જીવે નથી. ૮ 'सचाहि' त्या शा---'मइमं-मतिमान्' भुद्धिमान ५३५ 'सव्वाहि अणुजुत्तीहि-सर्वाभिरनुयुक्तिभिः' मा १२नी युतियाथी 'पडिलेहिया-प्रतिलेख्य' भवानी श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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