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समयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. २ अनुकूलोपसर्गनिरूपणम् ७५ यत् हे महर्षे ! इस्त्यश्वादावुपविश्य क्रीडनार्थ वाटिकां गच्छ, सर्वत उत्तम भोगं स्वीकुरु । अनेनोपायेन भवन्तं वयं पूजयाम इति भावः ॥१६॥
पुनरप्याह--'वस्थे' त्यादि । मूलम्-वस्थगंधमलंकारं इत्याओ सयणाणि य ।
भुंजाहिमाई भोगाइं आउसो पूजयामु तं ॥१७॥ छाया--वस्त्रगंधमलं कारं स्त्रियः शयनानि च ।
मुंश्वेमान् भोगानायुष्मन् ! पूजयामस्त्वाम् ॥१७॥ अन्वयार्थः--(आउसो) हे आयुष्मन् ! (वस्थगंधमलंकार) वस्त्रगंधमलंकारम्
आशय यह है कि-पूर्वोक्त चक्रवर्ती राजा आदि साधु के समीप पहुंचकर इस प्रकार कहते हैं-हे महर्षे ! हाथी घोडा आदि पर सवार होकर क्रीडा करने के हेतु वाटिका में पधारिए । उत्तमोत्तम भोगों को स्वीकार कीजिए । इस उपाय से हम आप की पूजा करते हैं ॥१६॥
पुनः कहते हैं-'वत्ध' इत्यादि ।
शब्दार्थ--'आउसो-आयुष्मन्' हे आयुष्मन् 'वत्थं-वस्त्रम्' उत्तम वस्त्र 'गंध-गन्धम्' गन्ध और 'अलंकारं-अलङ्कारम्' अलंकार आभूषण 'इथिओ-स्त्रिया' स्त्रियां 'य-च' और 'सयणाणि-शयनानि' शय्या आसन उपवेशन-बैठने के योग्य वस्तु 'इमाई भोगाई-इमान् भोगान्' इन्द्रिय और मन के अनुकूल इन भोगों को 'भुज-भुक्ष्य' आप भोगे 'तं-स्वाम् आप को 'पूजयामु-पूजयामः' पूजा करते हैं ॥१७॥
अन्वयार्थ--आयुष्मन् ! वस्त्र, गंध, आभूषण, स्त्री शय्या और કરીને રાજા, રાજમંત્રી, આદિ પૂર્વોક્ત લોકો સાધુને સંયમના માર્ગેથી ચલાયમાન કરીને ભેગે પ્રત્યે આસકત કરે છે. ગાથા ૧૬.
'वत्थ त्याहि
शा--'आउसो-आयुष्मन्' 3 आयु भन् 'वत्थं-वस्त्रम्' उत्तम पस गंध -गन्वम्' म सने 'अलंकारं-अलङ्कारम्' ५४२-माभूषा 'इथिओ-स्त्रियः' नियो 'य-च' भने 'सयणाणि-शयनानि' शैया अर्थात पथारी मासन 6५. वेशन अर्थात् मेसवाना योग्य १२तु 'इमाई भोगाई-इमान् भोगान्' ४न्द्रिय भने भनने अनुमा लागाने 'भुंज-मुंश्व' २५ लोगो 'तं-त्वाम्' मापन 'पुजयामु-पुजयामः' मा ५ रीमे छीने. ॥१७॥
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨