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________________ १८२ सूत्रकृतागसूत्रे हात्वा गुरूपदेशादिना सत्यधर्मस्वरूपं श्रुत्य, ज्ञानादिगुणोपार्जने संलग्नः पापंपरिस्पज्य विमलात्मा भवति साधुरिति ॥१४॥ मूलम्-जं किंचुंबक्कम जाणे आउखेमस्स अप्पणो। तस्सेव अंतराँ खिप्पं सिक्खं लिक्खेज्ज पंडिए ॥१५॥ छाया-यं कंचिदुपक्रमं जानीयाद् आयुः क्षेमस्य आत्मनः । तस्यैवान्तरा क्षिप्रं शिक्षा शिक्षेत पण्डितः ॥१५॥ अन्वयार्थः-- (अपणो आउखेमस्स) आत्मनः-स्वस्यायुःक्षेमस्य-स्वायुषः (जं किंचुवामं जाणे) यत् किश्चिापक्रमं जानीयात्-स्वायुपः क्षयकालं ज्ञात्वा (तस्सेव अंतरा) तस्यै वान्तरा-तन्मध्ये एव (खिप्पं) क्षिपं-शीत्रम् (पण्डिए) पण्डितः परिणामों से मुनि मोक्षमाग में उपस्थित हो। वह समस्त प्राणातिपात आदि पापों का त्यागी हो। आशय यह है कि साधु अपनी ही निर्मल बुद्धि से अथवा गुरु आदि के उपदेश से सत्य धर्म के स्वरूप को जानकर, ज्ञानादि गुणों के उपार्जन में तत्पर और पापों का परित्याग कर के निर्मल होता है ॥१४॥ 'जं किंचुवक्कम जाणे' इत्यादि। शब्दार्थ-'अप्पणो आउक्खेमरस-प्रात्मनः आयुः क्षेमस्य' विद्वान पुरुष अपनी आयुका जरिनुचकमाणे-यत् किंचित् उपक्रमं जानीयात्' क्षयकाल यदि जाने तो 'तस्लेव अंदरा-तस्यैव अन्तरा' उसके अंदर ही 'खिप्पं-क्षिप्र' शीघ्र 'पंडिए-पण्डितः' विद्वान् मुनि 'सिक्ख-शिक्षा' संलेखनारूप शिक्षा 'सिक्खेज्जा--शिक्षेन' ग्रहण करे ॥१५॥ अन्वयार्थ-ज्ञानवान पुरुष अपनी आयु का कोई उपक्रम आयु કહેવાનો આશય એ છે કે સાધુ પિતાની જ નિમલ બુદ્ધિ વડે અથવા ગ૩ વિગેરેના ઉપદેશથી સત્ય ઘર્મના સ્વરૂપને જાણીને જ્ઞાન વિગેરે ગુણેના ઉપાર્જનમાં તત્પર રહીને તથા પાપનો ત્યાગ કરીને નિર્મળ બની જાય છે. ૧૪ जं किंचुवकमं जाणे' त्यात शहा-'अप्पणो बाउक्खश्स्स-आत्मनः आयुःक्षयस्य' विद्वान् ५३५ पोताना मायुष्यन 'ज किंचुत्रक्कम जाणे-यत् किंचित् उपक्रम जानीयात्' यसले M तो “तस्सेव अंतरा-तस्यैव अन्तरा' तेनी ५४२ ०४ 'खिप्प-क्षिप्रं' arelथा 'पंडिए-पण्डितः' यति भुमि सिख-शिक्षा समना ३५ शिक्षान 'सिक्खेज्जा-शिक्षेत' अ५ ७२. ॥१५॥ અન્વયાર્થ–જ્ઞાનવાનું પુરૂષ પિતાના આયુષ્યને કેઈ ઉપક્રમ એટલે કે શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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