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________________ - - समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ.७ उ.१ कुशीलवतां दोषनिरूपणम् ५५५ ___ अन्वयार्थः- (जाईपह) जातिपथं-एकेन्द्रियादिजाती 'अणुपरिवहमाणे' अनुपरिवर्तमानः-जन्ममरणं कुर्वाणः (स) सः जीयः (तसथावरेहि) बसस्थावरेषु समुत्पद्य (विणिघायमेति) चिनिघातं विनाशमेति प्राप्नोति, (जाइजाई) जातिजातिम्-ए केन्द्रियादिषु अनेकशो जन्म गृहीत्या (बहुकूरकम्मे बाले) बहुकरकमा बालोऽज्ञानी (जं कुम्वइ तेण मिज्जइ) यत् प्राणातिपातं करोति तेन कर्मणा म्रियते-जन्ममरणं करोति ॥३॥ यह सूत्रकार दिखलाते हैं-'जाईपहं' इत्यादि। ___ शब्दार्थ--'जाईपह-जातिपथम्' एकेन्द्रिय आदि जातियों में 'अणु. परिवढमाणे-अनुपरिवर्तमान:' जन्म मरण को प्राप्त करताहुआ 'से-सः' यह जीय तसथायरेहि-त्रसस्थायरेषु' त्रस और स्थावर जीयों में उत्पन होकर 'विणिघायमेति-चिनिघातमेति' नाशको प्राप्त होता है 'जाइ. जाई-जातिजातिम्' एकेन्द्रियादिकों में बार बार जन्म लेकर 'बहुकूरकम्मे बाले-बहुकरकर्मा बाला' बहुत क्रूर कर्म करनेवाला यह बाल-अज्ञानी जीव 'जं कुव्यइ तेण मिज्जइ-यत् करोति तेन म्रियते जो कर्म करता है उसीकर्म से जन्म मरण प्राप्त करता है ॥३॥ __ अन्वयार्थ-एकेन्द्रिय आदि जातियों में परिभ्रमण करता हुमा अर्थात् जन्म मरण करता हुआ यह जीव त्रसस्थावर योनियों में उत्पन्न होकर घात को प्राप्त होता है। एक जाति से दूसरी जाति में જતાં તેઓ કેવી રીતે સંસાર ભ્રમણ કરે છે, તે સૂત્રકાર હવે બતાવે છેजाईपहं' त्याह हाथ-'जाईपह-जातिपथम्' मेन्द्रिय विमेरे जतियोमा 'अणुपरिव. माणे-अनुपरिवर्तमानः' सन्म. अने भ२४ प्राय: 'से-सः' ते ७५ 'तसथावरेहि-त्रसस्थायरेषु' उस अने स्था५२ वामपन्न यन 'विणिपायमेति-विनिघातमेति' नाशने आस थाय छे. 'जाइजाई-जातिजातिम्' मेजेन्द्रियविगरेमा वारपार भ ने 'बहुक्ररकम्मे बाले-बहूक्रूरकर्मा बाल' पyur १२ ४३२पावापाना ते मान-मज्ञानी ०५ 'जं कुव्यइ तेण मिज्जइ-यत् करोति तेन म्रियते' २ ४ ४२ छ.२ मे भथीभ भरण प्राप्त छे ॥ ३॥ સૂત્રાર્થ–એકેન્દ્રિય આદિ જાતિમાં પરિભ્રમણ કરતે થકે એટલે કે જન્મ-મરણ કરતા કરતા તે જીવ ત્રસસ્થાવર નીઓમાં ઉત્પન થઈને ઘાત પામતે રહે છે-લુણાતે રહે છે. એક જાતિમાંથી બીજી જાતિમાં શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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