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________________ ५४६ सूत्रकृताङ्गसूत्रे अन्ययार्थ:---(अरहंतभासियं) अर्हद्भाषितं-तीर्थकरमतिपादितम् (समाहियं) समाहित-युक्तियुक्तम् (अट्ठपओवसुद्धं) अर्थपदोपशुद्धम्-अर्थैः पदैश्च निर्दोषम् (धम्मं सोचा) धर्म-श्रुतचारित्रलक्षणं श्रुत्वा (तं सदहाणा) तं-धर्ममहद्भाषितं थदधाना:-तत्र श्रद्धां कुर्वन्तः (जणा) जनाः-लोकाः (अणाऊ) अनायुषः-अपगतायुःकर्माणः सन्तः मोक्ष प्राप्नुवन्ति,-अथवा-(इंदा व) इन्द्रा इव (देवाहिय) देवाधिपाः-देवस्यामिनः (भागमिस्संति) आगमिष्यन्ति-भविष्यन्तीति ॥२९॥ रोका--'अरहंतभासियं' अर्हद्भाषितम् 'समाहिय' समाहितम् युक्तियुक्तम् 'अट्ठपोयसुद्धं' अर्थपदोपशुद्धम्, अर्थः-प्रतिपाद्याभिधेयैः पदेस्तद्वाचकशब्दैः उपपदोपशु'- अर्थ और पदों से युक्त 'धम्म सोच्चा-धर्म श्रुत्वा धर्म को सुनकर 'तं सदहाणा-तं श्रद्दधानाः' उसमें श्रद्धा रखने वाले 'जणाजना: मनुष्य 'अणाउ-अनायुषः' मोक्षको प्राप्त करते हैं अथवा 'इंदाय इन्द्र इव' ये इन्द्र के जैसे 'देवाहिय-देवाधिपाः' देवताओं के अधिपति "आगमिस्संति-आगमिष्यन्ति' होते हैं ॥२९॥ अन्वयार्थ-अरिहन्त के द्वारा प्ररूपित, युक्तियुक्त, अर्थ और शब्द दोनों दृष्टियों से निर्दोष धर्म को श्रवण करके, उस पर जो श्रद्धा करते हैं, ये भव्य जन आयुकर्म से रहित हो कर मुक्तिलाभ कर लेते हैं अथवा इन्द्र के समान देवों के अधिपति होते हैं ॥२९॥ ____टोकार्थ--सर्वज्ञ सर्वदर्शी अरिहन्त भगवन्त द्वारा भाषित युक्ति संगत तथा भाव और भाषा अर्थात् वाच्य और वाचक या अर्थ एवं शब्द दोनों ही दृष्टियों से सर्वथा निर्दोष श्रुतचारित्र रूप धर्म को सुन शुद्धं' म भने पोथी युत 'धम्म सोच्चा-धर्म श्रुत्वा' यमन सलमान •त महहाणा-तं श्रदाधानाः' तेमा श्रद्धा रामापा 'जणा-जनाः मनुष्य 'अणा3-अनायुषः' भाक्षने प्राप्त ४२ छे. अथवा 'इंदाव-इन्द्र इव' तेव्म। छन्द्र ना: 'देवाहिव-देवाधिपाः' हेयतामान अधिपति 'आगमिस्संति-आगमिध्यन्ति' थाय छे. ॥ २८ ॥ સૂત્રાર્થ—અરિહન્ત ભગવાન દ્વારા પ્રરૂપિત, યુક્તિયુક્ત, અર્થ અને શબ્દ બને દષ્ટિએ નિર્દોષ ધર્મનું શ્રવણ કરીને, તેના ઉપર જે શ્રદ્ધા રાખે છે, તે ભવ્ય-જી આયુકમથી રહિત થઈને મુક્તિ પ્રાપ્ત કરી શકે છે, અથવા દેવાના અધિપતિ ઈન્દ્રની પદવી તે અવશ્ય પ્રાપ્ત કરે છે. ૨૯ ટીકાર્થ–સર્વજ્ઞ, સર્વદશી અરિહન્ત ભગવતે દ્વારા ભાષિત, યુક્તિસં. ગત તથા ભાવ અને ભાષા–એટલે કે વાચ્ય અને વાચક અથવા અર્થ અને શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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