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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ५१५ सामान्यकेवली तस्य बहुवचने मुनय स्तेषां मध्ये भगवान् महावीरः वैजयन्तःपताकेव प्रधानः, सम्पूर्णस्य लोकस्य वैजयन्ती इस उपरि व्यवस्थितः केवलज्ञाना. दिगुणै स्तपोभिरिति भावः ॥२०॥ मूलम्-हत्थीसु एरावण माहुणाए,सीहोमिंगाणंसलिलाणगंगा। पक्खीसुवागरुले वेणुदेवो, निवाणवादीणिह णायपुत्ता२१॥ छाया-हस्तिष्यैरायतमाहुः ज्ञातं सिंहो मृगाणां सलिलानां गङ्गा । ___ पक्षिषु वा गरुडो वेणुदेवो निर्वाणयादिना मिह ज्ञातपुत्रः ॥२१॥ अवस्थाओं को मनन करता है अर्थात् जानता है यह सामान्य केवली कहां जाता है, यहाँ सामान्य केवली शब्द से मुनि विवक्षित है। उनमें तीर्थकर होने से भगवान महावीर प्रभु प्रधान हैं। आशय यह है कि भगवान् अपनी अद्भुत तपस्या के कारण सम्पूर्ण लोक के ऊपर पताका के समान हैं ॥२०॥ 'हत्थीप्लु' इत्यादि। शब्दार्थ-'हस्थीसु-हस्तिषु' हाथियों में 'णाए ज्ञातं' जगत्प्रसिद्ध ऐसे 'एरावणमाहु-ऐरायतम् आहुः' ऐरावत हाथी को प्रधान कहते हैं 'मिगाणं सीहो-मृगाणां सिंहः' मृगो में सिंह प्रधान है 'सलिलाणं गंगा-सलि. लानां गंगा' एवं जलों में गंगा प्रधान है अथवा 'पक्खीसु या गरुले वेणुदेयो-पक्षिषु मध्ये गरुडो वेणु देयः' पक्षियों में वेणु देव गरुड प्रधान સૈકાલિક અવસ્થાઓનું મનન કરે છે, એટલે કે જાણે છે, એવા સામાન્ય કેવલીને અહીં મુનિ કહેવામાં આવેલ છે. એવાં મુનિઓમાં તીર્થકર હોવાને કારણે, મહાવીર પ્રભુ શ્રેષ્ઠ છે. તાત્પર્ય એ છે કે ભગવાન મહાવીર પિતાની ઘોર તપસ્યાને કારણે સંપૂર્ણ લેકની ઉપર પતાકાના સમાન સર્વોચ્ચ સ્થાન ધરાવે છે–તેમની ઘોર તપસ્યાને કારણે સૌથી વધારે યશકીતિ ધરાવે છે. મારા 'हत्थीसु' त्याह सहाय-हुत्थी-हस्तिषु' थियोमा ‘णाए-ज्ञातं' प्रसिद्ध मेवा 'परायण माहू-ऐरावतम् आहुः' मेरावत हाथीने प्रधान वामां आवे छे. 'मिगाण' सीहो-मृगाणां सिहः' भृशामा सिड प्रधान छे. 'सलिलाण गंगा-सलिलानां गंगा' से प्रभारी rai प्रधान छे. अथवा 'पक्खिसु वा गहले वेणुदेवो-पक्षिष या मध्ये गरुडो वेणुदेवः' पक्षियोमा यो वेष-३७ प्रधान छ. 'निव्याणवादीणिह શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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