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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ. १ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ४८७ अन्वयार्थः- (सहस्साण उ जोयणाणं सयं) सहस्राणां योजनानां तु शतम्-लक्षयोजनशतमुचै: (विकंडगे) त्रिकण्ड : भौमजाम्बूनदवैडूर्येति विभागत्रयवान (पंडगवेजयते) पताकारूपेण पण्डकरनं तत्र व्यवस्थितम् (से) सः - मेरुः (जोयणे णवणव सहरसे) योजनानि नवनवतिसहस्राणि (ऊद्धस्सिओ) ऊर्ध्वमुच्छ्रितः (सहस्स मेगं g) सहस्रमेकमधी व्यवस्थित इति ॥१०॥ - टीका - ( सहस्साण उ ) सहस्राणां तु (जोयणाणं) योजनानाम् (सयं) शतम्, पर्वत मेरुः सहस्रयोजनानां शतम् योजनानामेकं लक्षमित्यर्थः उन्नतः तथा(तिकंडगे) त्रिकण्डकः, तत्र त्रीणि काण्डानि भौमजाम्बूनद वैडूर्यमयानि सन्ति (पंडगवैजयंते) पण्डक वैजयन्तः - पण्डकवनं शिरसि व्यवस्थितं वैजयन्तीरूपं पताकोपमं रहा है 'से- सः' वह मेरु पर्वत 'जोयणे णवणवतिसहस्से - योजनानि नवनवतिसहस्राणि निन्नानेवे हजार योजन 'उदूधुस्सिओ - ऊर्ध्व मुच्छ्रितः' ऊपर की ओर ऊँचा है 'सहस्समेगं हेड-सहस्रमेकं अधः' तथा एक हजार योजन भूमि के अंदर के भाग में गढ़ा है ॥ १० ॥ अन्वयार्थ - मेरु पर्वत एक लाख योजन ऊँचा तथा भौम, जम्बूनद और वैडूर्य इन तीन विभागों वाला है । वहाँ पताका रूप से पण्डक वन रहा हुआ है। वह सुमेरु निन्न्यानवे (९९) निन्यानवे हजार योजन ऊपर है और एक हजार योजन पृथ्वी के नीचे है ॥ १० ॥ टीकार्थ- सुमेरु पर्वत सौ हजार अर्थात् एक लाख योजन ऊंचा है । उसमें तीन काण्ड हैं- भौमकाण्ड, जाम्बूनदकाण्ड और वैहूर्यकाण्ड, पण्डकवन उसकी पताका के समान स्थित है । वह सुमेरु उ५२ रडेस पडडवन धमनी प्रेम शोभायमान था रडेल छे. 'से- सः' ते भे३पर्यंत 'जोयणे णवणवतिसहस्से - योजनानि नवनवतिसहस्राणि ' नव्वाशु हर योजन 'उद्धुस्सिओ - ऊर्ध्वमुतिः' ७५२नी मालु थे! छे 'सहस्स मेगं हे - सहस्रमेकं अधः' तथा मे उन्नर योवन लूमिनी अधरना लागभां દટાયેલા છે. ! ૧૦ ॥ સૂત્રા—મેરુ પર્યંત એક લાખ ચાજન ઊંચા છે. તેના નીચે પ્રમાણે ત્રણ વિભાગેા છે–ભૌમ, જામ્બૂના અને વૈય ત્યાં પડકવન તેની પતાકાના જેવુ' શાલે છે. તે મેરુ પર્યંત જમીનની ઉપર ૯૦૦૦ નવાણુ હજાર ચાજનની ઊંચાઈ સુધી અને પૃથ્વીની નીચે ૧૦૦૦ એક હજાર ચેાજન સુધી વ્યાપ્ત છે. ૧૦૦ ટીકા—સુમેરુ પર્યંત એક લાખ ચાજન ઊંચા છે, તેના ત્રણ કાંડ ( विभाग) B. (१) लोभमंड, (२) लभ्यूनडांड, भने (3) वैडूर्यकांड पंडम्वन શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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