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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ४७५
अन्वयार्थ - (से) सा-बर्द्धमानस्वामी (भूइपण्णे) भूतिप्रज्ञोऽन्तज्ञानवान् (अणिएअचारी) अनिकेतचारी-गृहरहितः, (ओघंतरे) ओघन्तरः-संसारसमुद्रतरण. शीलः (धीरे) धीरः-मेधावी (अणंतचक्खू) अनन्तचक्षुः-केवलज्ञानी (मूरिएव) सूर्यइव प्रकाशकः (अणुत्तरे) अनुत्तर:-सर्वातिशायी (तप्पइ) तपति सर्वेभ्योऽधिकज्ञानीत्यर्थः, (वइरोयर्णिदेव) वैरोचनेन्द्र इत्र (तम पगासे) तमः प्रकाशयति अग्निरिव अन्धकारं विनाश्य पदार्थप्रकाशकइति ॥६॥
टीका-(से) स भगवान् महावीरस्वामी, (भूइपन्ने) भूतिपज्ञः तत्र भूतिशब्द:वृद्धमङ्गलरक्षास्पशेषु वर्तते । तथाच भूतिप्रज्ञः, भूतिः-प्रद्धा महती-प्रज्ञा यस्य सागर को पार करनेवाले 'धीरे-धीरः' बुद्धिशाली 'अणंतचक्खू-अनंत चक्षुः केवलज्ञानी 'सरिए व-सूर्य इव' जैसे सूर्य 'अणुत्तरे-अनुत्तरः' सबसे ज्यादा 'तप्पह-तपति' तपता है इसी प्रकार भगवान सबसे अधक ज्ञानवाले थे 'वैरोयणिदेव-वैरोचनेद्र इव' अग्नि के समान 'तमं पगासे' 'तमः प्रकाशयति' अन्धकार से वस्तु का प्रकाश करनेवाले है अर्थात् भगवान् अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर करके पदार्थों के यथार्थ स्वरूप को प्रकाशित करते हैं ॥६॥ ____ अन्वयार्थ-भगवान महावीरस्वामी अनन्तज्ञानी, अनिकेत रूप से विचरण करनेवाले अर्थात् गृहरहित, संसारसागर से तिरने वाले, धीर, अनन्तदर्शनवान्, सूर्य के समान प्रकाशशील सर्वोत्तम, सब से अधिक ज्ञानवान , वैरोचन इन्द्र के समान तथा अग्नि के समान अज्ञानान्धकार का विनाश करके पदार्थों के प्रकाशक थे। ६। ३२१वा 'धीरे-धीरः' मुद्धिजी 'अणंतचक्खू'-अनंतचक्षुः' ज्ञानी 'सूरए व-सूर्य इव' वी शते सूर्य 'अणुत्तरे-अनुत्तरः' मधायी पधारे 'तप्पइतपति' त छ मेवी रीत सवा साथी अधि: ज्ञानवता धैरोयणिंदेव-वैरोचनेन्द्र इव' RGनना समान 'तमं पगासे-तमः प्रकाशयति' अ५४२थी વસ્તુને પ્રકાશ કરવાવાળા છે અર્થાત્ ભગવાન્ અજ્ઞાનરૂપી અંધકારને દૂરકરીને પદાર્થોને યથાર્થ સ્વરૂપથી પ્રકાશિત કરે છે. ૬ છે
સૂવાથે–ભગવાન વર્ધમાન સ્વામી અનન્તજ્ઞાની, અનિયતરૂપે વિચરણ કરનારા, એટલે કે ગૃહુરહિત, સંસારસાગરને તરનારા, ધીર, અનન્તદર્શનવાન, સૂર્યના સમાન પ્રકાશશીલ, સર્વોત્તમ, સૌથી અધિક જ્ઞાનવાન, વિરેચન-ઈન્દ્રના સમાન તથા અગ્નિના સમાન અજ્ઞાનાન્ધકારને વિનાશ કરીને પદાર્થોના १ ता. ॥६॥
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨