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सूचकृतास्त्र मूलम्-समूसियं नाम विधूमठाणं, जं सोयतत्ता कलणं थणति। अहोसिरं कट्ट विगत्तिऊणं, अयंव सत्थेहिं समोसवेति ॥८॥ छाया-समुच्छ्रितं नाम विधूमस्थान यत् शोकतप्ताः करुणं स्तनन्ति ।
अधःशिरः कृत्वा विकाऽय इव शस्त्रैः समवसरन्ति ॥८॥ अन्वयाथः-(समूसियं) समुरिछूतं (नाम) नाम-उच्चचितावत् (विधूमठाणं) विधमस्थानं-धूमरहिताग्निस्थानं विद्यते 'ज' यत् स्थानम् प्राप्य 'सोयत्तत्ता' शोक किये जाते हैं। अर्थात् वे जहां कहीं भी जाते हैं, वहीं उन पर विपत्तियों के पहाड गिरते हैं ॥७॥ ___ 'समूमियं' इत्यादि।
शब्दार्थ-समूमिय-समुच्छ्रितम्' ऊँची चिता के समान 'विधूमठाणं-विधूमस्थानम्' धूमरहित अग्नि का एक स्थान है 'ज-यत्' जिस स्थान को प्राप्त करके 'सोयतत्ता-शोकतप्ता' शोक से दुःखित नारकि जीव 'कलुणं-करुणम्' करुणाजनक 'थणंति-स्तनन्ति' रुदन करते हैं 'अहोसिरं कटूटु-अधः शिरः कृत्वा' नरकपाल नारकि जीव के शिर को नीचा करके 'वित्तिऊणं-विकय तथा उसकी देह को काटकर 'अयंव सत्थेहि-अयोवत् शस्त्रैः' लोह के शस्त्र से 'समोसति-समवसरन्ति' खण्ड खण्ड करके काटते हैं ॥८॥ ___ अन्वयार्थ--ऊंची चिता के सदृश धूमरहित अग्नि का एक स्थान है, जिसे प्राप्त करके शोक से तप्त नारक जीव करुण आक्रोश करते हैं। તે પણ દુઃખ તેમને કેડે છોડતું નથી. તેમના ઉપર જાણે કે દુઃખના પહાડે જ તૂટી પડે છે _ 'समूसिय' त्यहि
शा---'समूसियं-समुन्छितम्' यी विताना समान विधूमठाणंविधूमस्थानम्' धूमा१२ना मनिनु मे स्थान छे. 'ज-यत' २ स्थानन प्रात शने 'सोयतत्ता-शोकतप्ताः' शोथी हुमित न04 'कलणंकरुणम्' ४३४ 'थगंति-स्तनन्ति' ३६न ४२ छ 'अहोसिर कटु-अधः शिरः कृत्वा' न२३५८ नाना भाथाने नीया उशने 'विगत्तिऊणंविकर्त्य' तथा तेना ने पीने 'अयं वसत्थेहि-अयोवत् शस्त्रैः' सोमना Aथा 'समोसवेंति-समवसरन्ति' टुडे टु४७ ४रीन पे छे. ॥८॥
સૂત્રાર્થ–એક ઊંચી ચિતાના આકારનું, ધુમાડા વિનાની અગ્નિથી મુક્ત એક સ્થાન હોય છે. જ્યારે પરમધામિક નારકેને તે ચિતામાં ફેંકે
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨