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________________ ३७२ सूत्रकृताङ्गसूत्रे दु:खविशेषान् उम्पादयन्ते । नरकपालास्तान् नारकजीवान् पीडयन्ति, यतः कृतकर्मणां । कदाचिदपि फलोपभोगमन्तरा न ततो विमुक्ता भवन्तीति भावः॥१९॥ मूलम्-ते हम्ममाणा णरगे पंडंति पुने दुरवस्स महाभितावे । ते तत्थ चिंट्रति दुर्वभक्खी तुटूंति कम्मोवगया किमीहि।२०। छाया-ते हन्यमाना नरके पतन्ति पूर्णे दूरूपस्य महाभितापे । ते तत्र तिष्ठंति दूरूपभक्षिणः त्रुटयन्ते कर्मोपगताः कृमिभिः ॥२०॥ देकर उसी प्रकार के उनके द्वारा अन्य प्राणियों को दिये गये दंड की याद दिलाते हैं। क्योंकि अपने किये कर्मों का फल भोगे विना उनसे छुटकारा नहीं पाते हैं ॥१९॥ शब्दार्थ--'हम्ममाणा ते-हन्यमानास्ते' परमाधार्मिकों के द्वारा मारे जाते वे नारकि जीव 'महाभितावे-महाभितापे' महान् कष्ट देने वाले 'दुरुवस्स पुण्णे-दूरूपेण पूर्णे' विष्टा और मूत्र से पूर्ण 'नरएनरके' दूसरे नरक में 'पडंति-पतन्ति' गिरते हैं 'ते तत्थ-ते तत्र' वे वहां 'दुरूवभक्खी-दुरूपभक्षिणः' विष्टा, मूत्र आदि का भक्षण करते हुए 'चिट्ठति-तिष्ठन्ति' चिरकाल तक निवास करते हैं 'कम्मोवगयाकोपगता:' स्वकृत कर्म के वशीभूत होकर 'किमीहि-कृमिभिः' कीड़ों के द्वारा 'तुट्टांति-त्रुड्यन्ते' पीड़ित होते हैं ॥२०॥ મરણ કરાવે છે. તેઓ તેમને જે પ્રકારને દંડ દે છે, એજ પ્રકારને દંડ તેમણે (નારકેએ) પૂર્વ જન્મમાં અન્ય જીવોને દીધું હતું, એ વાતનું તેઓ તેમને સમરણ કરાવે છે, કેમકે નારક જીવે તેમણે પૂર્વભવમાં કરેલાં કર્મોનું ફળ ભોગવ્યા વિના નરકનાં દુઃ ખેમાંથી છુટકારો પામી શકતા નથી. ૧લા शाय-'हम्ममाणा ते-हन्यमानास्ते' ५२मायामि ॥ ॥२भा२पामा qdi ते ना२:ो । 'महाभितावे-महाभितापे' महान् ४२ ॥१॥ 'दुहवस्स पुण्णे-दूरूपेण पूर्णे' 421 अने भूत्रथी पूर्ण 'नरए-नरके' भी न२४मा 'पडंति-पतन्ति' ५3 छे 'ते तत्थ-वे तत्र' ते त्या 'दुरूवभक्खी -दूरूपभक्षिणः' विटा, भूत्र विरेनु सक्षY ४२ता 'चिटुंति-तिष्ठन्तिः' in stu सधा निवास रे छे. 'कम्मोवगया-कर्मोपगता' स्वत मना पीभूत धने 'किमिहि-कृमिभिः' ।। २'तुटुंति-त्रुटयन्ते' पीडित थाय छे. ॥२०॥ શ્રી સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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