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________________ १९८ सूत्रकृतागसूत्रे छाया--संख्याय पेशलं धर्म दृष्टिमान परिनिर्वृतः । उपसर्गान् नियम्य आमोक्षाय परिव्रजेन् ॥२२॥ अन्वयार्थः-(दिटिमं) दृष्टिमान-सम्यग्दृष्टिः (परिनिन्खुडे) परिमिता शान्तः पुरुषः (पेसलं धम्म संखाय) पेशलं-मोक्षानुकूलं धर्म श्रुतचारित्रलक्षणं संख्यायज्ञात्वा (उपसग्गे) उपसर्गान् अनुकूलप्रतिकलान् (नियामित्ता) नियम्य-अतिसा, (आमोक्खाय) आमोक्षाय-मोक्षपर्यन्तं (परिधए) परिव्रजेत् संयमानुष्ठानं कुर्यात्ता २२ टीका--'दिट्टिमं दृष्टिमान् सम्यग्दर्शनी परिनिव्वुडे' परिनिई तः कषायोपशमाच्छान्तः 'पेसलं धम्म संखाय' पेशलं-मनोज्ञ मोक्षं प्रत्यनुकूलम् 'धम्म' धर्मम्-श्रुतचारित्रारूयम् ‘संखाय' सम्यक् स्वबुद्धया ज्ञात्वा, अन्यस्मादुपश्रुत्य वा शब्दार्थ:-दिट्टिमं-दृष्टिमान्' सम्यग्दृष्टी 'परिनिव्वुडे-परिनिर्वृतः' शांतपुरुष 'पेसलं धम्म संखाय-पेशलं धर्म संख्याय' मुक्ति प्राप्त करने में अनुकूल ऐसा श्रुतचारित्ररूप इस धर्म को जान करके 'उवसग्गे-उपसर्गान्' अनुकूल प्रतिकूल उपसर्गों को नियामित्ता-नियम्य' सहन करके 'आमोक्खाय-आमोक्षाय' मोक्ष प्राप्ति पर्यंत 'परिचए-परिव्रजेत्' संयम का पालन करे ॥२२॥ ___ अन्वयार्थ- सम्यग्दृष्टि से सम्पन्न शान्त पुरुष मोक्ष के अनुकूल इस सुन्दर धर्मको जानकर तथा अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्गों को सहन करके मोक्ष प्राप्ति पर्यन्त संयम का आचरण करे ॥२२॥ टीकार्थ--सम्यग्दर्शन से युक्त तथा कषायों के उपशम से शान्त पुरुष इस मनोज्ञ एवं मोक्ष के अनुकूल श्रुतचारित्ररूप धर्म को सम्बक शार्थ-'दिद्विमं-दृष्टिमान्' सभ्यष्टि 'परिनिव्वुडे-परिनिर्वृतः' aid ५३५ पेसलं धम्मं संखाय-पेशलं धर्म संख्याय' भुति प्रा ४२वामा मनु सेवा श्रुतयारित्र३५ ॥ यमन तीन 'उवसग्गे-उपसर्गान्' मनु प्रति 64सनि नियामित्ता-नियम्य सनरीने 'आमोक्खाय-आमोक्षाय मोक्ष प्राति सुधी परिपए-परिव्रजेत्' सयमनु पासन रे. ॥२२॥ સૂત્રાર્થ–સમ્યગ્દષ્ટિથી યુક્ત, શાન્ત પુરુષે મોક્ષને અનુકૂળ આ સંદર ધર્મનું સ્વરૂપ સમજી લઈને તથા અનુકૂળ અને પ્રતિકૂળ ઉપસર્ગોને સહન કરીને મોક્ષપ્રાપ્તિ થાય ત્યાં સુધી સંયમની આરાધના કરવી જોઈએ. મારા ટીકાર્થ–સમ્યગ દર્શનથી યુક્ત અને કષાયેના ઉપશમને લીધે જેનું ચિત્ત શાન્ત થઈ ગયું છે એવા પુરુષે મોક્ષ પ્રાપ્ત કરાવનારા મૃતચારિત્રરૂપ - શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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