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________________ १७४ सूत्रकृताङ्गसूत्रे छाया-एवमे के तु पार्श्वस्था मिथ्यादृष्टयोऽनार्याः । __अध्युपपन्नाः कामेषु पूतना इव तरुणके ॥१३॥ अन्वयार्थ:-(एवं) एवम्-पूर्वोक्तपकारेण-मैथुनं निरवयं मन्यमानाः, (एगे) एके तु-केचन (पासत्था) पावस्थाः (मिच्छादिट्ठी) मिथ्यादृष्टयः विपरीतावबोधाः (अणारिया) अनार्याः (कामेहिं) कामैरिच्छामदनरूपैः कामेषु वा शब्दादिषु (अज्झोववन्ना) अध्युपपन्ना: गृद्धिभावमुपगताः (तरुणए) तरुणकेस्वापत्ये (पूयणा इव) पूतना इव-पूतना उरभ्रीवेति ॥१३॥ ____ अब सूत्रकार उपसंहार करते हुए गण्ड पीडा (फोडे को दबाने) आदि दृष्टान्त देनेवालों के कथन को दूषित करने के लिए कहते हैं--'एवमेगे उ' इत्यादि। शब्दार्थ-एवं-एवम् ' पूर्वोक्त प्रकार से-मैथुन को निरवद्य मानने वाला 'एगे उ-एके तु' कोई 'पासस्था-पार्श्वस्थाः' पार्श्वस्थ 'मिच्छदिट्ठीमिथ्यादृष्टयः' मिथ्याष्टिवाले 'अणारिया-अनार्या.' अनार्य 'कामेहिकामै' काममोगोमें अथवा शब्दादिविषयों में 'अज्झोववन्ना-अध्युपपन्नाः' अत्यन्त आसक्त होते हैं 'तरुणए-तरुणके अपने बालकों पर 'पूयणा इव-पूतना इव' जैसे पूतना नामकी डाकिनी आसक्त रहती हैं ।१३। अन्वयार्थ-इस प्रकार मैथुन को निर्दोष मानने वालेकोई कोई पार्श्वस्थ मिथ्यादृष्टि हैं, अनार्य हैं, और कामभोगों में उसी प्रकार आसक्त हैं जैसे पूतना डाकिनी बालकों पर आसक्त होती है ॥१३॥ હવે સૂત્ર ઉપસંહાર કરતા સૂત્રકાર ઉપર્યુક્ત દષ્ટાન્ત દ્વારા (ખીલને દબાવવાના, સ્થિર જળ પીનાર પિંગ પક્ષી આદિના દૃષ્ટાન્ત દ્વારા) પોતાના મતનું समर्थन ४२नारा बीनी मान्यतानु मन ४२ छ.-"एवमेगे' त्याह शाय---एवं-एवम्' पूर्वरित ४२थी भैथुनने नि२१५ भानवाशा 'एगे उ-एके तु' । 'पासत्था-पार्श्वस्थाः' पाश्व २५ ‘मिच्छदिदी-मिथ्यादृष्टयः' मिथ्याष्टिा 'अणारिया-अनार्याः' मनाय 'कामेहि-कामः' भागमा अथ। ५४ बोरे विषयोमा 'अज्ज्ञोववन्ना-अध्युपपन्ना.' अत्यन्त पधारे मासात डाय छे. 'तरुणए-तरुणके' पाताना मा ५२ 'पूयणा इव-पूतना इव' જેવી રીતે પૂરના નામની ડાકણ આસક્ત રહે છે. ૧ટા સૂત્રાર્થ– આ પ્રકારે કામગોને નિર્દોષ માનનારા કોઈ કોઈ પાર્શ્વ (શિથિલાચારીઓ) મિયાદષ્ટિ છે અને અનાર્ય છે. તેઓ કામગોમાં એટલાં બધાં આસક્ત છે કે જેટલી પૂતના ડાકણ બાલકો પર આસક્ત હોય છે. ૧૩ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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