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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. १ परिषहोपसर्गसहनोपदेश: अधुना सर्वजनप्रतीतं दृष्टान्तं प्रदर्शयति सूत्रकारः - 'पयाता' इत्यादि । ५ ५ 3 पयाता सूरा रणसी से संगामम्मि उट्टिए । ७ माया पुरं न जाणाइ जेण परिविच्छए ॥ २ ॥ छाया - मयाताः शूरा रणशीर्षे संग्रामे उपस्थिते । माता पुत्रं न जानाति जत्रा परिविक्षाः ||२|| अन्वयार्थः - ( संगामम्मि) संग्रामे ( उवट्टिए) उपस्थिते प्राप्ते (रणसी से ) रणशीर्षे = युद्धाग्रभागे ( पयाता) प्रयाताः प्राप्ताः (सूरा) शूराः = शूरं मन्यमानाः (माया) माता (पुत्तं न जाणाइ) पुत्रं न जानाति = कटिप्रदेशतो भ्रश्यन्तं स्तनंधअब सूत्रकार सर्वविदित दृष्टान्त को दिखलाते हैं- 'पयाता' इत्यादि । शब्दार्थ - 'संगामम्मि संग्रामे ' युद्ध 'उबट्ठिए' - उपस्थिते ' छिडने पर 'रणसी से - रणशीर्षे ' युद्ध के अग्रभाग में 'पयाता - प्रयाताः ' गया हुआ 'सूरा' - शूराः ' वीराभिमानी पुरुष 'माया - माता ' माता 'पुत्तं न जाणइ' - पुत्रं न जानाति अपने पुत्र को गोद से गिरता हुआ नहीं जानती है ऐसे व्यग्रता युक्त युद्ध में 'जेएण - जेत्रा' विजेता पुरुष के द्वारा 'परिविच्छए - परिचिक्षताः 'छेदन भेदन किया हुआ दीन बन जाता है ॥२॥ अन्वयार्थ - संग्राम उपस्थित होने पर युद्ध के अग्रभाग में उपस्थित हुए शूर अर्थात् वीरत्व का अभिमान करने वाले किन्तु वास्तव में कायर पुरुष, जिस भयानक युद्ध में माता अपनी गोदी से गिरते हुवे पुत्र को भी नहीं जानती, ऐसे युद्ध में विजेता के द्वारा पराजित कर दिए जाते हैं ||२|| - हवे सूत्रार सर्वविति दृष्टान्त अष्ट पुरे छे - 'पयाता' त्याहि. शब्दार्थ - ' संगामम्मि संग्रामे' युद्ध 'उबट्टिए - उपस्थिते' थवा सागे त्यारे 'रणसिसे- रणशीर्षे' युद्धना आगणना लागमां 'पयाता - प्रयाताः ' गयेस 'सूरा - शूराः ' वीर अलिभानी पु३ष 'माया - माता' माता 'पुत्तं न जाणाई' - पुत्रं न जानाति ' પેાતાના પુત્રને ખેાળામાંથી પડતાં જાણતી નથી, એવા વ્યગ્રતાયુક્ત યુદ્ધમાં 'जेवण - जेत्रा' विनेता पु३षना द्वारा 'परिविच्छए- परिविक्षताः छेन लेहन उरता દીનતાયુક્ત બની જાય છે. રા સૂત્રા—જેવી રીતે યુદ્ધની ભીષણતાને કારણે ગભરાઈ ગયેલી માતાની ગેાઢમાંથી નીચે સરી પડતા બાળકનું ધ્યાન પણ માતાને રહેતું નથી, એજ પ્રમાણે પેાતાના વીરત્વનું અભિમાન કરનાર-કાયર હાવા છતાં પણ પેાતાને શૂરવીર માનનાર–પુરુષ સમરાંગણમાં જ્યારે દુશ્મનની સામે ઉપસ્થિત થાય છે ત્યારે જોત જોતામાં શૂરવીર વિજેતા દ્વારા પરાજિત કરાય છે. રા શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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