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________________ सूत्रकृताङ्गसूत्री छायाएवं स उदाहृतवान्ननुत्तरज्ञान्यनुत्तरदर्शी अनुत्तरज्ञानदर्शनधरः। अर्हन् ज्ञातपुत्रो भगवान् शालिको व्याख्यातवानिति ब्रवीमि ॥२२॥ ___ अन्वयार्थ:(ए) एवमनेन प्रकारेण (से) सः-ऋषभस्वामी (उदाहु) उदाहृतवान्= कथितवान् (अणुत्तरनाणी) अनुत्तरज्ञानी-केवलज्ञानवान् (अणुत्तरदंसी) अनुत्तरदी-केवलदर्शी (अणुचरनाणदसणधरे) अनुत्तरज्ञानदर्शनधरः-सकलकर्मक्षयकारकः (नायपुत्ते) ज्ञातपुत्रः (अरहा) अर्हन् (भग) भगवान-पद्धमानस्वामी ऋषभस्यामी पा (वेसालिए) चैशालिक:-विशालाजननीजातो महावीरः, (वियाहिए) व्याख्यातवान् । (त्तिबेमि) इत्यहं तुभ्यं ब्रवीमि कथयामीति॥२२॥ सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी से कहते हैं - "एवं से उदाहु" इत्यादि। शब्दार्थ-एवं-एवम्' इस प्रकार 'से-सः' ऋषभ स्वामीने 'उदाहुउदाहृतवान्' कहा था 'अणुतरनाणी-अनुत्तर ज्ञानी' उत्तम ज्ञान वाले 'अणुत्तरदंसी-अनुत्तरदर्शी' अनुत्तर दर्शन वाले 'अणुत्तरे नाणदंसणधरे-अनुत्तरज्ञानदर्शनधरः उत्तम ज्ञान और दर्शन को धारणकरने वाले 'अरहा-अर्हन्' इन्द्रादि देवों के पूज्य 'नायपुत्ते-ज्ञातपुत्रः' ज्ञातपुत्र 'भगवं-भगवान्' ऐश्व यदि गुणवाले वर्धमान स्वामीने 'वेसालिए-वैशालिके विशालानगरी में पियाहिए-व्याख्यातवान्' कहा था 'त्तिबेमि-इति ब्रवीमि' ऐसा में कहता हूं ॥२२॥ -अन्वयार्थइस प्रकार उन ऋषभदेव ने कहा था । अनुत्तर ज्ञानी अनुत्तरदी अनुत्तर ज्ञान दर्शन के धारक, समस्त कर्मों का क्षय करने वाले, अहंत ज्ञातपुत्र भगवान वर्द्धमान स्वामी ने भी विशाला नगरी में ऐसा ही कहा था ॥२२।' सुधा स्वामी स्वामीन छ “एव से उदाह" त्याह शहाथ-एवं-एवम्' मा प्ररे से सः' ऋषम स्वामी 'उदाहु-उदाहृतवान्' धु हतु. 'अणुत्तरनाणी--अनुत्तरज्ञानी' उतम ज्ञान 'अणुत्तरदसी-अनुत्तरदर्शी' मनुत्त२ शनवा 'अणुत्तरनाणदं सणधरे--अनुत्तरज्ञानदर्शनधरः' उत्तम ज्ञान भने शनने घा२७१ ४२वावाणा 'अरहा-अईन्' न्द्र पगेरे हेयाने पून्त्य 'नायपुत्ते-ज्ञातपुत्रः' शातपुत्र 'भगय भगवान' मैश्वयं बगेरे गुरुपाणा 4 भान पाभीये 'बेसालिएवैशालिके' qिuet नगरीमा वियाहिए--व्यख्यातवान्' उस तु 'त्ति बेमि-इति ब्रवीमि' એવું જ હું કહું છું. તે ૨૨ . _ સૂત્રાર્થ - રાષભદેવ ભગવાને પૂર્વોકત મુકિતમાર્ગનું પ્રતિપાદન કર્યું હતું. અને અનુત્તરજ્ઞાની અનુત્તરદશી અનુત્તર જ્ઞાનદર્શનના ધારક, સમસ્ત કર્મોને ક્ષય કરનારા જ્ઞાતપુત્ર વૈશાલિક અહંત ભગવાન વર્ધમાન સ્વામીએ પણ એવું જ પ્રતિપાદન કર્યું છે પરરા શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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