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________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे मूलन् संवुडकम्मरस भिक्खुणो जं दुक्ख पुढे अवोहिए। तं संजमओऽवचिजई मरणं हिच्चा वयंति पंडिया॥१॥ ७ ८ १२ छायासंवृतकर्मणो भिक्षोः यदुःखं स्पृष्टमबोधिना। तत्संयमतोऽपचीयते मरणं हित्वा ब्रजन्ति पण्डिताः ॥१॥ अन्वयार्थः--- (संवुडकम्मस्स) संवृतकर्मणः-निरुद्धाश्रवद्वारस्य (भिक्खुणो) भिक्षोः साधोः (अबोहिए) अबोधिना=अज्ञानवशेन (ज) यत् (दुक्खं) दुख तज्जनकमष्टविधं कर्म वा शब्दार्थ-'संबुडकम्मस्स-संवृतकर्मणः' आठ प्रकार के कर्मों का आगमन जिसने रोकदिया है । ऐसे 'भिक्खुणो-भिक्षोः' साधुको तथा 'अबोहिए-अबो धिना' अज्ञान वशसे 'ज-यत्' जो दुक्ख-दुःखम्' दुःख 'पुढे-स्पृष्टम्' बंधा है 'तं-तत् वह दुःख 'संजमओ-संयमतः' सतरह प्रकारके संयम से 'अवचिजइ -अपचीयते' प्रतिक्षण क्षीण हो जाता है और 'पंडिया- पंडिताः' वे पंडित पुरुष अर्यात् सत् असत् के विवेक वाला पुरुष 'मरणं हिच्चा- मरणं हित्या' मरण को छोडकर 'वयंति-वजन्ति' मोक्षको प्राप्त करते हैं ॥१॥ अन्वयार्थ आश्रवद्वारों को रोक देने वाले साधु के अज्ञान के कारण बंधे हुए या निकाचित हुए दुःख अथवा आठकर्म भगवान् के कहे सतरह प्रकार के संयम से शाय --'सडकम्मस्त-संवृतकर्मणः' म18 प्र४॥२॥ मानणे २४ी हीछे, ये 'भिक्खुणो-भिक्षोः' साधुने तथा 'अबोहिए-अबोधिना' अशान पशथी 'ज-यत्' 'दुक्ख-दुःखम् दुः५ 'पुट्ठ-स्पृष्टम्' मधेस छे 'त-तत् तदुः५ 'संजमओ-संयमतः' मा ४२न। सयभथी 'अवचिजइ-अपचीयते ४२४ क्षण क्षीण थ जय छे भने, 'पडिया-पंडिताः' ते परत ५३५ अर्थात् सत्य असत्यना विवेया पु३५ 'मरण हिच्चा-मरण हित्वा' भने छाडीने 'वयंति-व्रजन्ति' भाक्षने प्रात ४२ छे. ॥१॥ __ -सूत्राथઅજ્ઞાનને કારણે બાંધેલા અથવા નિકાચિત થયેલા આઠ પ્રકારના કર્મોના આશ્રય દ્વારેને બંધ કરનાર સાધુ, ભગવાન દ્વારા આદિષ્ટ સત્તર પ્રકારના સંયમનું પાલન કરવાથી શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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